मोटिवेशनल स्टोरी

Motivational Story – ये कहानियाँ आपको सफल बना कर आपका जीवन बदल देंगी

 

Story In Hindi Motivational
Motivational Story In Hindi 2023

 

पढ़ने से पहले… धीरे से अपनी आँखे बंद करे… अपनी हृदय की गहराई में उतरे…  एक बार विचार करे की वास्तविकता में मैं कौन हूँ, मेरी पहचान किससे हैं…….धीरे से अपनी आँखे खोले, पढ़ना जारी रखें…*

 

*दुख*

शहर का सबसे ख़ूबसूरत, आलीशान घर!
कोई भी उसे देखता, तो उसकी तारीफ़ किये बिना नहीं रह पाता।

एक बार घर का मालिक किसी काम से कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर चला गया। कुछ दिनों बाद जब वह वापस लौटा, तो देखा कि उसके मकान से धुआं उठ रहा है। करीब जाने पर उसे घर से आग की लपटें उठती हुई दिखाई पड़ी। उसका ख़ूबसूरत घर जल रहा था। वहाँ तमाशबीनों की भीड़ जमा थी, जो उस घर के जलने का तमाशा देख रही थी।

अपने ख़ूबसूरत घर को अपनी ही आँखों के सामने जलता हुए देख वह व्यक्ति चिंता में पड़ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे? कैसे अपने घर को जलने से बचाये? वह लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा कि वे किसी भी तरह उसके घर को जलने से बचा लें।

उसी समय उसका बड़ा बेटा वहाँ आया और बोला, "पिताजी, घबराइए मत। सब ठीक हो जायेगा।"

इस बात पर कुछ नाराज़ होते हुए पिता बोले, "कैसे न घबराऊँ? मेरा इतना ख़ूबसूरत घर जल रहा है।"

बेटे ने उत्तर दिया, "पिताजी, माफ़ कीजियेगा। एक बात मैं आपको अब तक बता नहीं पाया था। कुछ दिनों पहले मुझे इस घर के लिए एक बहुत बढ़िया खरीददार मिला था। उसने मेरे सामने मकान की कीमत की 3 गुनी रकम का प्रस्ताव रखा। सौदा इतना अच्छा था कि मैं इंकार नहीं कर पाया और मैंने आपको बिना बताये सौदा तय कर लिया।"

ये सुनकर पिता की जान में जान आई। उन्होंने राहत की सांस ली और आराम से खड़े हो गए, जैसे सब कुछ ठीक हो गया हो। अब वह भी अन्य लोगों की तरह तमाशबीन बनकर उस घर को जलते हुए देखने लगे।

तभी उसका दूसरा बेटा आया और बोला, "पिताजी हमारा घर जल रहा है और आप हैं कि बड़े आराम से यहाँ खड़े होकर इस जलते हुए घर को देख रहे हैं। आप कुछ करते क्यों नहीं?"

"बेटा चिंता की बात नहीं है। तुम्हारे बड़े भाई ने ये घर बहुत अच्छे दाम पर बेच दिया है। अब ये हमारा नहीं रहा। इसलिए अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता।" पिता बोले।

"पिताजी भैया ने सौदा तो कर दिया था। लेकिन अब तक सौदा पक्का नहीं हुआ है। अभी हमें पैसे भी नहीं मिले हैं। अब बताइए, इस जलते हुए घर के लिए कौन पैसे देगा?"

यह सुनकर पिता फिर से चिंतित हो गए और सोचने लगे कि कैसे आग की लपटों पर काबू पाया जाए। वह फिर से पास खड़े लोगों से मदद की गुहार लगाने लगे।

तभी उनका तीसरा बेटा आया और बोला, "पिताजी घबराने की सच में कोई बात नहीं है। मैं अभी उस आदमी से मिलकर आ रहा हूँ, जिससे बड़े भाई ने मकान का सौदा किया था। उसने कहा है कि मैं अपनी जुबान का पक्का हूँ। मेरे आदर्श कहते हैं कि चाहे जो भी हो जाये, अपनी जुबान पर कायम रहना चाहिए इसलिए अब जो हो जाये, जबान दी है, तो घर ज़रूर लूँगा और उसके पैसे भी दूंगा।"

पिता फिर से चिंतामुक्त हो गए और घर को जलते हुए देखने लगे।

तो दोस्तों, एक ही परिस्थिति में व्यक्ति का व्यवहार भिन्न-भिन्न हो सकता है और यह व्यवहार उसकी सोच के कारण होता है। उदाहारण के लिए जलते हुए घर के मालिक को ही ले लिजिए। घर तो वही था, जो जल रहा था। लेकिन उसके मालिक की सोच में कई बार परिवर्तन आया और उस सोच के साथ उसका व्यवहार भी बदलता गया।

असल में, जब हम किसी चीज़ से जुड़ जाते हैं, तो उसके छिन जाने पर या दूर जाने पर हमें दुःख होता है। लेकिन यदि हम किसी चीज़ को खुद से अलग कर देखते हैं, तो एक अलग-सी आज़ादी महसूस करते हैं और दु:ख हमें छू तक नहीं पता है। इसलिए दु:खी होना और ना होना पूर्णतः हमारी सोच और मानसिकता (mindset) पर निर्भर करता है। सोच पर नियंत्रण रखकर या उसे सही दिशा देकर हम बहुत से दु:खों और परेशानियों से न सिर्फ बच सकते हैं, बल्कि जीवन में नई ऊँचाइयाँ भी प्राप्त कर सकते हैं।

*"चीजों के साथ हमारा अनावश्यक लगाव हमारे दु:खो का कारण बन जाता है।"*

 

दूध का उफान

गुलशहर में रहते थे रमेश दत्त। उनके घर में बड़े बेटे की शादी थी। बहुत सारे मेहमान आए हुए थे। शादी के लिए दो अतिरिक्त नौकर थोड़े समय के लिए रख लिए गए थे, पर फिर भी ज्यादा जिम्मेदारी घर के नौकर रामू की ही थी। वह बहुत दिनों से काम कर रहा था इस घर में।

सारा दिन घर में रामू-रामू की आवाज उठती रहती थी, “रामू चाय, रामू पानी लाओ। रामू जल्दी से बाजार जाकर सब्जी लाओ। रामू कहाँ चला गया...इतनी देर से पुकार रहे हैं। रामू, रामू, रामू।” वह सारा दिन जैसे चकरी की तरह इधर से उधर चक्कर लगाता रहता था। सुबह से लेकर आधी रात तक यही चलता रहता था।

शादी धूमधाम से हुई। मेहमान एक-एक करके विदा लेने लगे | जो दो नौकर शादी के काम के लिए रखे गए थे, उनका हिसाब कर दिया गया, रह गया रामू। सुबह से रात तक वह काम में लगा रहता था।

एक दिन मेहमानों को खीर  खिलाने का कार्यक्रम बना। रामू ने एक बड़े भगोने में दूध उबलने के लिए गैस पर रख दिया और एक तरफ बैठ गया। उसने सोचा, ‘चलो दूध के बहाने से ही सही, कुछ देर तो आराम कर सकेगा।’

कुछ देर बाद देखा गया कि रसोईघर की नाली से दूध बहकर बाहर आ रहा है। मालकिन ने रसोईघर में जाकर देखा, दूध उबल-उबलकर भगोने से बाहर गिरकर सब तरफ फैल रहा था और एक कोने में रामू मजे से सो रहा था। उसकी नाक से खर्राटों की आवाज आ रही थी।

मालकिन यानी रमेश दत्त की पत्नी शांता तो गुस्से से आग हो गईं। चिल्लाकर बोली, “इतने सारे दूध का नुकसान कर दिया। अब मेहमानों के लिए खीर कैसे बनेगी। आने दे बाबूजी को आज ही तेरा हिसाब साफ करवा दूँगी!”

रामू हड़बड़ाकर जाग गया। कुछ पल के लिए तो मामला उसकी समझ में ही नहीं आया कि आखिर मालकिन चिल्ला क्यों रही है, हुआ क्या है। फिर जो बिखरा हुआ दूध देखा तो अपनी गलती पता चली। हाथ जोड़कर माफी माँगने लगा। पर मालकिन का पारा चढ़ा हुआ था। वह रामू की लापरवाही के लिए उसे खरी-खोटी सुनाती रहीं।

रसोईघर के बाहर कई लोग आ जुटे। रामू लज्जित हो उठा। मेहमानों के सामने उसे ऐसी बात तो कभी नहीं सुननी पड़ी थी। कुछ देर तक सिर झुकाए चुप खड़ा रहा, फिर आँधी की तरह बाहर निकल गया। काफी समय बीतने पर भी वह नजर नहीं आया।

दोपहर के बाद बाबूजी घर लौटे। आते ही उन्हें रामू की करतूत पता चली। उन्हें पता चल गया कि अब वह मेहमानों के साथ खीर का स्वाद नहीं ले सकेंगे।शांता देवी ने रमेश दत्त से कहा, “रामू बहुत लापरवाह हो गया है। वह समझता है, उसके बिना हमारा काम नहीं चलेगा इसीलिए लापरवाही करने लगा है। आज इतने सारे दूध का नुकसान कर दिया। इससे पहले भी कई कीमती चीजें तोड़ चुका है। किसी दूसरे नौकर को रखना होगा।”

रमेश दत्त ने कहा, “ठीक है, पर वह है कहाँ? उसे बुलाओ तो सही। उसकी बात सुनकर ही तो कोई फैसला करूँगा।”
शांता देवी ने क्रोध से कहा, “वह क्या कहेगा? यही न, माफ कर दीजिए गलती हो गई। ऐसा तो वह न जाने कितनी बार कह चुका है। ऐसे लापरवाह नौकर को घर में रखना ठीक नहीं।”

सारा दिन रामू घर से गायब रहा। शाम को एक बच्चे ने खबर दी, “रामू घर के सामने वाले पार्क में बैठा है।”

“उसे बुला लाओ, मेरा नाम लोगे तो झट आ जाएगा।” रमेश दत्त बोले।

रामू तुरंत चला आया। उसे देखते ही पूरा घर आ जुटा। सब कहने लगे, “कहाँ चला गया था इस तरह बिना कहे। यह तो अच्छी बात नहीं। एक तो दूध का नुकसान कर दिया, ऊपर से नाराजगी का नाटक कर रहा है ताकि बाबूजी कुछ न कहें।”

रामू सिर झुकाए खड़ा था। शांता देवी ने कहा, “रामू, अब इस घर में तुमसे काम चलने वाला नहीं। तुम दूध गैस पर रखकर मजे से खर्राटे लेने लगे और सारा दूध निकलकर नाली में बह गया।”
“जी, मैं...” रामू ने कहना चाहा।
रमेश दत्त ने कहा, “तो तुम दिन में सो रहे थे। काम के बीच रसोई में सो रहे थे। यह तो गलत बात है। दिन में नींद आती है तो रात में क्या करते हो?”
रामू चुप रहा। शांता देवी बोली, “हाँ, बताओ?”
“दिन में और कौन-कौन सोता है?” रमेश दत्त ने सबसे सवाल किया।“कोई भी नहीं।” जवाब आया।
“तो फिर रामू ही क्यों दिन में सो रहा था? क्या यह रात में नहीं सोता?”
“जी, इधर रात में काम खत्म करते-करते बारह बज ही जाते हैं। सोने में दो बजते हैं।” रामू ने जवाब दिया।
“और सुबह कितने बजे उठते हो।”
“जी, साढ़े पाँच बजे...”

सब खामोशी से दोनों की बातें सुन रहे थे। “इसका मतलब यही हुआ कि तुम रात की  अधूरी नींद  दिन में पूरी कर रहे थे। रात की  बची नींद दिन में तुम्हारी आँखों में घुस गई और तुम सो गए। उधर दूध निकलकर नाली में बह गया। जाओ, तुम ऊपर छत पर बने कमरे में जाकर अधूरी नींद को पूरी होने दो। उसके बाद मैं कल सुबह तुम्हारा हिसाब करूँगा।” रमेशदत्त ने कहा।

रामू कुछ देर चुपचाप खड़ा रहा, फिर धीरे-धीरे छत पर चला गया। उसके जाते ही शांता देवी ने रमेश दत्त से कहा, “यह क्या, आपने तो उसे डाँटने के बजाए, आराम से सोने के लिए भेज दिया। उसे नौकरी से निकाले बिना काम नहीं चलेगा।”

रमेश दत्त ने हँसकर कहा, “देखो कसूर रामू का नहीं, नींद का है। वह सुबह मुँह अँधेरे से जो काम में लगता है तो आधी रात के बाद ही उसे फुरसत होती है। दूध गैस पर उबलने के लिए रखकर रामू जो बैठा तो बस नींद आ गई, क्योंकि कई रातों से नींद पूरी नहीं हुई थी। तो असली कसूर नींद का हुआ या रामू का?”
“लेकिन...” शांता देवी ने कहना चाहा।

“लेकिन वेकिन कुछ नहीं। जब किसी इंसान की नींद रात में पूरी नहीं होगी तो वह दिन में सोएगा। रामू के साथ भी यही हुआ। वह काफी दिनों से सुबह जल्दी उठकर रात को देर से सोता है। क्या यह सच नहीं।”
“हाँ, बात तो ठीक है, पर शादी के कारण काम ज्यादा था, इसीलिए ऐसा हुआ।” शांता देवी ने कहा।
“यहीं तो मैं भी कह रहा हूँ, रात को पूरी नींद न सो पाने के कारण ही ऐसा हुआ। क्या इसे हम रामू का कसूर मान सकते हैं?” रमेश दत्त ने पूछा।
“यह बात तो मैंने सोची ही नहीं थी।” शांता देवी बोलीं।

‘’और तुमने उसे नौकरी से निकालने की बात कह दी। नौकर होने के साथ-साथ वह मनुष्य भी तो है। और मैं घर का मालिक होने के साथ इंसान भी हूँ। इसीलिए मेरा फैसला है- दोष अधूरी नींद का है तो सजा रामू को नहीं मिलनी चाहिए।” रमेश दत्त का उत्तर था |
रामू ऊपर सोता रहा, रमेश दत्त ने सबसे कह दिया कि उसे कोई न जगाए। अगली सुबह रामू छत से नीचे आया तो उसके चेहरे पर ताजगी थी। रसोईघर में दूध से भरा भगोना गैस पर रखा था उबलने के लिए।

शांता देवी ने कहा, “रामू, आज खीर बनेगी। जल्दी से आ जाओ।” उन्होंने बीते कल की बात का कोई जिक्र नहीं किया। रामू हाथ धोकर रसोई में आ गया। उस दिन उसे नींद ने नहीं घेरा क्योंकि अधूरी नींद पूरी हो गई थी। उसने बढ़िया खीर बनाई। मेहमानों ने जमकर खाई और रामू की खूब तारीफ हुई। उसके बाद फिर कभी ऐसा नहीं हुआ कि रामू को दिन में इस तरह नींद ने परेशान किया हो। अब उससे किसी को कोई शिकायत नहीं थी।

कहानी-देवेंद्र कुमार

 

नकारात्मक सोच

तक़रीबन 26 साल नौकरी करने के बाद सुरेश बाबू इसी महीने रिटायर होने वाले थे । वे एक प्राइवेट कंपनी में आदेशपाल(चपरासी) के पद पर कार्यरत थे ।

एक तरफ़ जहाँ सुरेश जी को इस बात का सुकून था कि चलो अब तो एक खड़ूस , बत्तमीज औऱ क्रूर बॉस से छुटकारा मिलेगा , वहीं दूसरी ओर उन्हें इस बात की भी चिंता सता रही थी कि रिटायरमेंट के बाद अब उनका समय कैसे बीतेगा औऱ उनपर जो जबरदस्त आर्थिक जिम्मेदारी है , उसका निर्वहन वे कैसे करेंगे ??

दरअसल सुरेश बाबू को एक मात्र लड़की थी जिसकी पढ़ाई औऱ फ़िर व्याह की चिंता उन्हें खाए जा रही थी ।रिटायमेंट के बाद इस महंगाई में घर के ख़र्च के साथ साथ बेटी की शादी उनके लिए एक बड़ी चुनौती से कम न थी। ऊपर से उनकी बीमार पत्नी के इलाज़ का ख़र्च अलग से मुँह बाए खड़ा था ।

हालांकि लगभग 60 कर्मचारियों वाले उस दफ़्तर में अपने सुप्रीम बॉस सहित कुछ लोगों के बुरे बर्ताव के कारण वे मन ही मन बड़े दुखी रहते थे । फ़िर भी जब महीने की एक तारीख़ को उनके हाथों पर उनकी तनख्वाह आ जाती थी तब उनका सारा दुख दर्द फ़ुर्र हो जाता था ।

सुरेश बाबू ख़ुद भी शारीरिक रूप से दुरुस्त न थे । उनकी याददाश्त तो कुछ कमजोर हो ही चली थी , उनका अब हांथ भी कांपने लगा था । न चाहते हुए भी कुछ न कुछ गलती अक़्सर उनसे भी हो ही जाती थी ।वे क़भी दफ़्तर की सफ़ाई करना भूल जाते तो क़भी चाय में चीनी डालना। क़भी कभार तो गंदे ग्लास से ही किसी कर्मचारी को पानी पिला देते थे जिसके लिए उन्हें कुछ न कुछ भला बुरा सुनना पड़ता था । फ़िर भी सबकुछ चलते जा रहा था ।

आख़िरकार वो दिन भी आ ही गया जिस दिन सुरेश बाबू का दफ़्तर में आख़री दिन था । सुरेश जी वक़्त से कुछ पहले ही दफ़्तर पहुँच कर अपने नियमित कार्य में जुट गए। सबकुछ रोज़ की ही तरह था , बस आज दफ़्तर में ख़ामोशी कुछ ज़्यादा थी ।

शाम में जब आख़री बार दफ़्तर से घर जाने का वक़्त हुआ तो सुरेश बाबू ने टूटे मन से सोचा कि अंतिम बार खड़ूस बॉस के केबिन में जाकर उससे मिल लिया जाए लेकिन उन्हें बताया गया कि अन्य कर्मचारियों के साथ बॉस एक जरुरी मीटिंग कर रहे हैं , फ़िलहाल उन्हें कुछ देर इंतज़ार करना होगा ।

दो घंटे इंतज़ार के बाद भी जब मीटिंग ख़त्म नहीं हुई तो सुरेश बाबू मन ही मन चिढ़ गए औऱ बॉस को कोसने लगे......साला क्या अहंकारी आदमी है, सिर्फ़ एक मिनट के लिए मुझें बुलाकर मिल लेता ...अकड़ू साला ।

अंत में मायूस होकर सुरेश बाबू ने बिना बॉस से मिले ही अपने घर लौटने का मन बना लिया , ठीक तभी किसी ने आवाज़ दी....साहब तुम्हें बुला रहे हैं ।

सुरेश बाबू झटपट अंदर दाख़िल हुए लेकिन बॉस के केबिन का नज़ारा कुछ बदला बदला सा था।सुरेश जी को देखते ही सभी कर्मचारियों ने ज़ोर से ताली बजाकर उनका गर्मजोशी से स्वागत किया ।फ़िर बॉस ने मेज़ पर रखे एक केक को काटने के लिए सुरेश जी को धीरे से इशारा किया ।

पार्टी समाप्ति के बाद अब बॉस ने बोलना शुरु किया....सुरेश , हम सब ने आज मिलकर सामुहिक रूप से ये फैसला लिया है कि तुम्हें फ़िलहाल नौकरी से कार्यमुक्त न किया जाए औऱ तुम्हारी सेवाएं पहले की तरह ही बहाल रखी जाए क्योंकि हमें एक ईमानदार, जिम्मेदार औऱ वफ़ादार व्यक्ति की सख़्त आवश्यकता है ।

कुछ मामूली लापरवाहियों को अगर नज़रंदाज़ कर दिया जाए तो तुम एक बेहद ही कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति हो। तुम्हें तुम्हारी सेवाओं के बदले प्रत्येक कर्मचारी की तरफ़ से महीने के अंत में पाँच सौ रुपये दिए जाएंगे ।हालांकि ये हमारे ऑफिस के नियम के खिलाफ है , फ़िर भी तुम्हारी आर्थिक जरुरतों के देखते हुए तुम्हारे लिए ऐसा करना पड़ रहा है लेकिन ध्यान रहे तुम्हारी गलतियों के लिए तुम्हें मिलने वाली डांट में कोई रियासत नहीं मिलेगी ।

बॉस ने अपनी बातों को बीच में रोकते हुए रूपयों का एक बंडल सुरेश बाबू के हाथों में थमाया औऱ फ़िर बोलना शुरू किया....आज ही ये पाँच लाख रुपए हम सब ने मिलकर तुम्हारे लिए जमा किए हैं ताकि तुम अपनी बेटी की शादी धूमधाम से कर सको ।

बॉस ने जैसे ही अपनी वाणी को विराम दी तालियां फ़िर से गड़गड़ा उठी ।

सुरेश बाबू रोते हुए बॉस के चरणों में झुक गए लेकिन बॉस ने उन्हें पकड़कर अपने गले से लगा लिया ।

ऑफिस से निकलने के बाद डबडबाई आँखों को लेकर सुरेश बाबू अपने घर की ओर जाते हुए बस यही सोच रहे थे कि आज तक जिन लोगों को वे खड़ूस औऱ बेरहम समझ रहे थे , वे हक़ीक़त में कुछ औऱ ही निकल गए ।

.अक़्सर हमारे नकारात्मक विचारों के कारण किसी भी व्यक्ति के प्रति हमारे मन में जो धारणा बन जाती है वो हमेशा सही नहीं होती । क़भी क़भी लोग इतने भी बुरे नहीं होते जितने हम उन्हें मान बैठते हैं ।

प्रमोद त्यागी, आगरा

 

Real Motivational Story In Hindi
रिंकू सिंह
रिंकू सिंह 2 कमरों के छोटे से मकान में रहने वाला एक मिडिल क्लास लड़का हुआ करता था। परिवार पालने के लिए उसने झाड़ू-पोछा तक मारा। वही रिंकू क्रिकेट इतिहास में अंतिम ओवर में लगातार 5 छक्के मारकर मुकाबला खत्म करने वाला दुनिया का पहला बल्लेबाज बन गया है। रिंकू को 2018 में कोलकाता नाइट राइडर्स ने 80 लाख में खरीदा। आईपीएल के हिसाब से यह बहुत कम कीमत थी लेकिन रिंकू का बयान आया कि मेरे खानदान में इतना पैसा कभी किसी ने नहीं देखा। रिंकू ने गुजरात के खिलाफ अंतिम ओवर में जो किया, उसके बाद समूची दुनिया कह रही है कि हमने कभी किसी क्रिकेट मैच में ऐसा कुछ नहीं देखा। रिंकू सिंह ने यश दयाल की गेंदबाजी पर लगातार 5 छक्के मार KKR को हारा मैच जिता दिया।

रिंकू बेहद गरीब घर से आते हैं। उनके पिता घर-घर गैस सिलेंडर पहुंचाने का काम करते थे। और पूरा परिवार उसी सिलेंडर बांटने वाली एजेंसी से सटे दो कमरों वाले मकान में रहता था। अलीगढ़ स्टेडियम के पास रहने वाले इस परिवार के 5 बच्चों में रिंकू तीसरे नंबर पर हैं। रिंकू का एक बड़ा भाई ऑटोरिक्शा चलाता है, दूसरा एक कोचिंग सेंटर में काम करता है। 80 लाख में बिकने के बाद रिंकू सिंह ने बयान दिया था कि सोचा था 20 लाख में जाऊंगा। लेकिन मुझे 80 लाख मिल गए। पैसे मिलने के बाद सबके पहले मेरे दिमाग में ये आया कि मैं अपने भाई की शादी में योगदान दे पाऊंगा। और बहन की शादी के लिए भी पैसे बचा पाऊंगा। और एक अच्छे से घर में शिफ्ट हो जाऊंगा। मिडिल क्लास लड़के पैसे कमाने के बाद सबसे पहले परिवार का सोचते हैं। उन्हें लगता है कि अगर परिवार के लिए थोड़ा भी योगदान दे दिया, तो जिंदगी सफल हो गई।

दरअसल रिंकू ने इस दिन से पहले बहुत बुरे दिन देखे थे। इस ऑक्शन से 3 साल पहले उनके परिवार पर 5 लाख का कर्ज था। और इस परिवार की कमाई में ये पैसा वापस करना आसान नहीं था। नौवीं क्लास में फेल हो चुके रिंकू पढ़ाई में बहुत अच्छे नहीं थे। इसलिए उन्हें पता था कि उनकी किस्मत क्रिकेट से ही पलट सकती है। ऐसे में उन्होंने पूरा ध्यान इसी पर लगा दिया। रिंकू उस वक्त यूपी अंडर-19 टीम के लिए खेलते थे। और यहां से होने वाली सारी कमाई उन्होंने इस कर्ज को उतारने में लगाते थे। इस बारे में रिंकू ने कहा था,पापा और भैया महीने के 6-7 हजार ही कमा पाते थे। मेरा परिवार थोड़ा बड़ा है, इसलिए मेरे पास क्रिकेट पर फोकस करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था। जिंदगी में बहुत स्ट्रगल किया है।

रिंकू के परिवार का उन पर भरोसा तब बढ़ा, जब उन्हें दिल्ली के एक टूर्नामेंट में मैन ऑफ द सीरीज बनने पर एक मोटरसाइकिल मिली। अब पिताजी इस मोटरसाइकिल के जरिए सिलेंडर डिलिवर करने लगे। हालांकि हालात अब भी बहुत अच्छे नहीं थे। ऐसे में रिंकू ने अपने भाई से कुछ काम दिलाने को कहा। इस बारे में उन्होंने बताया था, वो मुझे जहां ले गए, वहां मुझसे साफ-सफाई और पोछा मारने का काम कराया गया। मैं घर लौटा तो अपनी मां से बोला कि मैं वहां दोबारा नहीं जाऊंगा। मुझे क्रिकेट में अपना भाग्य आजमाने दीजिए।  IPL 2023 में रिंकू सिंह को 80 लाख में खरीदने के बाद कोलकाता की टीम हर साल उन्हें रिटेन करती है। आखिरकार रिंकू ने अपना जलवा दिखा ही दिया। कोलकाता को क्रिकेट इतिहास का सबसे रोमांचक मुकाबला जिता दिया। झाड़ू और पोछा मारने से शुरू हुआ संघर्ष अब रंग ला रहा है। मिडिल क्लास परिवार का लड़का दुनिया हिला रहा है।

 

True Real Life Inspirational Stories In Hindi
गरीब की शादी
कुछ सालो पहले की बात है मेरे साथ में काम करने वाले चपरासी लखन  की बहन की शादी थी तो उसने करीब एक महीने पहले ही मुझसे बता दिया था कि वो 20 दिन के लिए अपने गांव जाएगा, उसने कुछ अग्रिम राशि के लिए भी आवेदन किया था जो 50000 थी मेने उस राशि को मंजूर कर दिया था लेकिन उससे पहले मेने पूछा था की इतने पैसे का क्या करेगा,तो उसका कहना था की बहन की शादी है वहां खर्च करना है बहन के लिए कपड़े बनवाने है और भी बहुत सा सामान बनवाना है।

मेरी रजामंदी के बाद वो पैसे ले कर और हमारे सभी सहकर्मियों को शादी का न्योता दे कर अपने गांव चला गया ,उसकी बहन की शादी 17 मार्च को थी हम भी भूल गए थे कि उसके घर में शादी है एक दिन अचानक उसका फोन आता है कि साहब जी आपको सबको शादी में जरूर आना है और परसों शादी है, और साथ में अपना पता भी बताया उसी दिन सबने मिल कर यही सोचा की अमीरों की शादियां तो बहुत देखते है एक बार गांव की शादी भी देख लेते है तो हमने नियत तिथि के लिए एक वहां किराए पर ले लिया और सभी शाम को अपना कार्य निबटा कर 6 बजे गाड़ी में आ गए हम सभी अलीगढ़ से आगे छाता के पास एक गांव है जिसकी दूरी दिल्ली से करीब 2.5 घंटे की है चल दिए ।

हम सभी 8.30 बजे वहां जा लगे,वो बिल्कुल पिछड़ा गांव था ये बात 2003की है उस समय इन्वर्टर नहीं हुआ करते थे ना ही उन लोगो के पास इतने पैसे थे की वो जेनरेटर किराए पर ले ले गैस वाली लालटेन से रोशनी की हुई थी बहुत लोग थे करीब 200 के आसपास फिर भी बड़ा अच्छा माहौल था सुकून था खाने में भी एक दाल एक सब्जी दही बुरा डाल कर और सब्जी में उपर से शुद्ध देशी घी डाल कर खाना खिला रहे थे बहुत ही अच्छा लग रहा था जैसे किसी स्वर्ग में आ गए हो ना ही फालतू का शोर,सिर्फ घर के नही बल्कि गांव के लोग भी पूरी बारात का स्वागत कर रहे थे लग ही नहीं रहा था की एक घर की शादी है पूरे गांव की बेटी की शादी थी, वहां एक खास बात और देखी की दही जमाने के लिए ये लोग हौदी का इस्तेमाल कर रहे थे।

सुबह भी बिदाई के समय पूरे गांव वाले परिवार की तरह खड़े थे और सबकी आंखों में आंसू भी साफ दिखाई दे रहे थे बेटी की शादी के लिए हम सभी लोग मिलकर कुछ सामान लाए थे साथ में शगुन के लिए भी कुछ पैसे दिए थे, बिदाई के बाद हमने भी चलने के लिए बोला तो लखन ने सभी के लिए शादी में बनी सब्जी दही बुरा और सबको आधा किलो देशी घी का डब्बा बांध कर दिया हमारे मना करने के बाद भी नहीं माना तो हमको लेना पड़ा ।

निकलने से पहले मेने उसके हाथ पर 1000 रखे और बोला की इसे रखो तुम्हारे काम आयेंगे तो लखन ने वो रुपए वापस कर दिए और बोला साहब मेरी बहन की शादी बहुत अच्छे से हो गई है और मेरे ऊपर किसी भी तरह का कर्ज भी नही है तो मुझे इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी इसे देने के लिए आपका धन्यवाद ,फिर उसने बताया कि गांव के सभी लोगो ने मिलकर शादी की है किसी ने घी दिया किसी ने दूध तो किसी के घर से बुरा आया और साथ में अपने खेत की ताजी सब्जियां तो थी ही और सारा खर्च मिला कर भी 2000 मेरे पास बचे है,मतलब सिर्फ 48000 में शादी ये सब तो हम शहरी लोग कभी सोच ही नहीं सकते, साथ का असली मतलब गांव होता है मेने पहली बार समझा था, धन्य हो ऐसे लोग जो सबको अपना परिवार मान कर कार्य करते हो वहां कभी परेशानी आ ही नहीं सकती है।

क्या हम शाही लोग ऐसा नहीं कर सकते दिखावे के चक्कर में लाखों रुपए बर्बाद कर देते हैं दो दिन बाद किसी को याद ही नहीं रहता की हम किसी अमीर की शादी में गए थे और वहां क्या खाया ।

प्रसंग पढ़ने के लिए अपनी व्यगितगत राय जरूर बताएं ।

निकेश गुप्ता

 

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