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धार्मिक सन्देश, Dharmik Quotes

 

Dharmik Status in Hindi
सनातन धर्म स्टेटस हिंदी

 

भक्ति स्टेटस
*एक आदमी संत के पास गया और बोला, ‘हे मुनिवर! मैं राह भटक गया हूँ, कृपया मुझे बताएँ कि सच्चाई, ईमानदारी, पवित्रता कैसे मिलेगी?*
*संत ने कहा, ‘अभी मेरा साधना का समय है। सामने तालाब में एक मछली है, उसी से यह सवाल पूछो, वह तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देगी*

*वह आदमी तालाब के पास गया, मछली आराम कर रही थी मछली ने अपनी आँख खोली तो उस आदमी ने अपना सवाल पूछा*

*मछली बोली, ‘मैं जवाब अवश्य दूँगी किन्तु मैं सोकर उठी हूँ, मुझे प्यास लगी है। कृपया पीने के लिए एक लौटा जल लेकर आओ*

*वह आदमी बोला, ‘कमाल है! तुम तो जल में ही रहती हो फिर भी प्यासी हो?*

*मछली ने कहा, ‘तुमने सही कहा, यही तुम्हारे सवाल का जवाब भी है। सच्चाई, ईमानदारी, पवित्रता तुम्हारे अंदर ही है। तुम उसे यहाँ-वहाँ खोजते फिरोगे तो वह  नही मिलेगी, अतः स्वयं को पहचानो*



*"भक्ति से उसे प्राप्त करो"*



: *क्या आपकी कुंड़ली मे भी कोई गृह* *आपको कष्ट पहुंचा रहा है…???*

*अगर हां तो यह लेख पुरा पढ़ो और आगे शेयर करो given।*

जो जीव एक बार श्री कृष्ण के शरणागत हो जाता है, उसे फिर किसी  को अपनी ग्रहदशा और जन्म कुंडली दिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

इसके पीछे का विज्ञान तो यह है कि भगवान् के शरणागत जीव की रक्षा स्वयं भगवान् किया करते हैं।

और सब ग्रह, नक्षत्र, देवी देवता श्री कृष्ण की ही शक्तियाँ हैं, सब उनके ही दास हैं।

इसलिए भक्त का अनिष्ट कोई कर नहीं सकता और प्रारब्ध जन्य अनिष्ट को कोई टाल नहीं सकता।

फिर भी कई बार हम अपने हाथों में में रंग-बिरंगी अंगूठियाँ पहनकर, जप, दान आदि करके हम अपने ग्रहों को तुष्ट करने में लगे रहते हैं।



*श्रीकृष्ण हमारे सखा हैं...*



आइये अब समझें कि किस ग्रह का हमारे सर्व समर्थ श्रीकृष्ण से कैसा संसारी नाता है।

जो मृत्यु के राजा हैं यम, वह यमुना जी के भाई हैं, और यमुना जी हैं भगवान की पटरानी, तो यम हुए भगवान के साले, तो हमारे सखा के साले हमारा क्या बिगाड़ेंगे...???

सूर्य हैं भगवान के ससुर (यमुना जी के पिता) तो हमारे मित्र के ससुर भला हमारा क्या अहित करेंगे...???

सूर्य के पुत्र हैं शनि, तो वह भी भगवान के साले हुए तो शनिदेव हमारा क्या बिगाड़ लेंगे...???

चंद्रमा और लक्ष्मी जी समुद्र से प्रकट हुए थे। लक्ष्मी जी भगवान की पत्नी हैं, और लक्ष्मी जी के भाई हैं चंद्रमा, क्योंकि दोनों के पिता हैं समुद्र।

तो चन्द्रमा भी भगवान के साले हुए, तो वे भी हमारा क्या बिगाड़ेंगे...???

बुध चंद्रमा के पुत्र हैं, तो उनसे भी हमारे प्यारे का ससुराल का नाता है।

हमारे सखा श्रीकृष्ण बुध के फूफाजी हुए, तो भला बुध हमारा क्या बिगाड़ेंगे...???

बृहस्पति और शुक्र वैसे ही बड़े सौम्य ग्रह हैं, फिर, ये दोनों ही परम विद्वान् हैं, इसलिए श्रीकृष्ण के भक्तों की तरफ इनकी कुदृष्टि कभी हो ही नहीं सकती।



राहु-केतु - जिस दिन एक से दो हुए, उस दिन से आज तक भगवान के चक्र के पराक्रम को कभी नहीं भूले।

भला वे कृष्ण के सखाओं की ओर टेढ़ी नजर से देखने की हिम्मत जुटा पाएँगे...???

तो अब बचे मंगल ग्रह...

ये हैं तो क्रूर गृह, लेकिन ये तो अपनी सत्यभामा जी के भाई हैं।

चलो, ये भी निकले हमारे प्यारे के ससुराल वाले।

अतः श्रीकृष्ण के साले होकर मंगल हमारा अनिष्ट कैसे करेंगे...???

इसलिए श्री कृष्ण के शरणागत को किसी भी ग्रह से कभी भी डरने की जरूरत नहीं...

संसार में कोई चाहकर भी अब हमारा अनिष्ट नहीं कर सकता।

इसलिए निर्भय होकर, डंके की चोट पर श्रीकृष्ण से अपना नाता जोड़े रखिए..


हाँ, जिसने श्रीकृष्ण से अभी तक कोई भी रिश्ता पक्का नहीं किया है, उसे संसार में पग~पग पर ख़तरा है।

उसे तो सब ग्रहों को अलग-अलग by मनाना पडेगा।

इसलिए श्री कृष्ण से अपना रिश्ता जोड़ लो और इनकी शरण में आ जाओ...

सदा उनके नामो का जाप करो......__/\__

*जै श्री कृष्णा*

🙏🙏🌹🌹🙏🙏

 

जब रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले, तो काल आया और जैसे ही काल आया, मौत आई तो गीधराज जटायु ने कहा -- खवरदार ! ऐ मौत ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना।
मैं मौत को स्वीकार तो करूँगा; लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकती, जब तक मैं सीता जी की सुधि प्रभु श्री राम को नहीं सुना देता।ईमानदारी से बतायें, इच्छा मृत्यु हुई कि नहीं? मरना चाहते हैं जटायु जी कि नहीं, जो मौत को ललकार रहे हैं और मौत छू नहीं पा रही है ।
काँप रही है खड़ी हो कर।गीधराज जटायु ने कहा -- मैं मौत से डरता नहीं हूँ ।
तुझे मैं स्वीकार करूँगा; लेकिन मुझे तब तक स्पर्श नहीं करना, जब तक मेरे प्रभु श्री राम न आ जायँ और मैं उन्हें सीताहरण की गाथा न सुना दूँ ।

 

मौत तब तक खड़ी रही, काँपती रही; लेकिन आपको पता होना चाहिए, इच्छा मृत्यु का वरदान तो मैं मानता हूँ कि गीधराज जटायु को मिला।
किन्तु महाभारत के भीष्म पितामह जो महान तपस्वी थे, नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे, 6 महीने तक बाणों की शय्या पर लेट करके मौत का इंतजार करते रहे ।
आँखों से आँसू गिरते थे।भगवान कृष्ण जब जाते थे तो मन ही मन हँसते थे; क्योंकि सामाजिक मर्यादा के कारण वहिरंग दृष्टि से उचित नहीं था ।
लेकिन जब जाते थे तो भीष्म के कर्म को देखकर मन ही मन मुसकराते थे और भीष्म पितामह भगवान कृष्ण को देखकर दहाड़ मारकर रोते थे ।

 

कन्हैया! मैं कौन से पाप का परिणाम देख रहा हूँ कि आज बाणों की शय्या पर लेटा हूँ ।
भगवान कृष्ण मन ही मन हँसते थे, वहिरंग दृष्टि से समझा देते थे भीष्म पितामह को; लेकिन याद रखना वह दृश्य महाभारत का है, जब भगवान श्री कृष्ण खड़े हुए हैं, भीष्मपितामह बाणों की शय्या पर लेटे हैं, आँखों में आँसू हैं भीष्म के, रो रहे हैं ।
भगवान मन ही मन मुसकरा रहे हैं ।

 

रामायण का यह दृश्य है कि गीधराज जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या पर लेटे हैं, भगवान रो रहे हैं और जटायु हँस रहे हैं ।
बोलो भाई, वहाँ महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे हैं और भगवान कृष्ण हँस रहे हैं और रामायण में जटायु जी हँस रहे हैं और भगवान राम रो रहे हैं बोलो, भिन्नता प्रतीत हो रही है कि नहीं?

 

अंत समय में जटायु को भगवान श्री राम की गोद की शय्या मिली; लेकिन भीषण पितामह को मरते समय बाण की शय्या मिली।
जटायु अपने कर्म के बल पर अंत समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहा है, राम जी की शरण में, राम जी की गोद में और बाणों पर लेटे लेटे भीष्म पितामह रो रहे हैं ।
ऐसा अंतर क्यों?

 

ऐसा अंतर इसलिए है कि भरे दरबार में भीष्म पितामह ने द्रौपदी की इज्जत को लुटते हुए देखा था, विरोध नहीं कर पाये थे ।
दुःशासन को ललकार देते, दुर्योधन को ललकार देते; लेकिन द्रौपदी रोती रही, बिलखती रही, चीखती रही, चिल्लाती रही; लेकिन भीष्म पितामह सिर झुकाये बैठे रहे।
नारी की रक्षा नहीं कर पाये, नारी का अपमान सहते रहे ।
उसका परिणाम यह निकला कि इच्छा मृत्यु का वरदान पाने पर भी बाणों की शय्या मिली और गीधराज जटायु ने नारी का सम्मान किया, अपने प्राणों की आहुति दे दी।
तो मरते समय भगवान श्री राम की गोद की शय्या मिली।

 

यही अंतर है, इसीलिए भीष्म 6 महीने तक रोते रहे, तड़पते रहे; क्योंकि कर्म ऐसा किया था कि नारी का अपमान देखते रहे और जटायु ने ऐसा सत्कर्म किया कि नारी का अपमान नहीं सह पाये, नारी के सम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी इसलिए

 

जल भरि नयन कहत रघुराई।

तात करम ते निज गति पाई।।

 

आज भगवान ने जटायु को अपना धाम दे दिया ।तो जटायु को भगवान का धाम मिला, भगवान का रूप मिला और वे भगवानमय बन गये।इस प्रकार जटायु चतुर्भुज रूप धारण करके भगवान के धाम को प्राप्त हुए ।

बोलिए भक्त और उनके भगवान की जय।🙏🙏🙏🙏🙏

 

*रामायण *

सर्वप्रथम शिव ने शक्ति को सुनाई थी ,
जिसे पशु पक्षियों ने भी सुना उन्हीं पशुओं में से एक पक्षी था काक -भुसुंडि जो कि एक कोआ है, काक भुसुंडिजी द्वारा कथा को नारद मुनि को सुनाया गया,
नारद मुनि द्वारा उक्त कथा ऋषि बाल्मीकि को सुनाई गई और बाल्मीकि द्वारा इसे पहली बार लिपिबध कर काव्य रूप में इसे संस्कृत में लिखा गया! बाद में तुलसीदास जी द्वारा भी रामायण काव्य की रचना की गई!

 

मुझे बताओ, तुम्हें क्या परेशान कर रहा है? एक प्रार्थना जिसका समय पर उत्तर नहीं दिया जाता है या आपको लगता है कि मैं आपकी बात नहीं सुनता? मैं आपके सामने रखी हर एक प्रार्थना को सुनता हूं.. आप जो कुछ भी करते हैं, मैं उसे देखता हूं..

मुझे पता है कि तुम क्या कर रहे हो और तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है..मुझे तुम्हारे लिए चिंता है..

कुछ दुआओं में देरी होती है लेकिन अनुत्तरित कभी नहीं जाते..

मैं आपको केवल वही देता हूं जो आपको इस समय चाहिए, न कि आप जो चाहते हैं..

मुझ पर भरोसा करना है, विपरीत परिस्थितियों में भी शांत रहना है, मुझ पर जो विश्वास है उसे थामे रखना..

इस निष्कर्ष पर न पहुंचें कि मैं आपकी बात नहीं सुनता..

मैं यहाँ बैठा हूँ तुम्हारे कर्मों को शुद्ध करने के लिए..

मुझे अपना काम करने दो, क्योंकि मुझे केवल इतना पता है कि आपको सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्राप्त करना क्या सही है.. तब तक मुझे कस कर पकड़ लो..

मुझसे बात करो, मेरे साथ हर एक बात साझा करो जैसे आप अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करते हैं ..

वे तब तक हैं जब तक आपके पास यह जीवन है, वे आपका समर्थन कर सकते हैं लेकिन मैं वही हूं जो आपको यहां लाया और आपको अंत तक ले जाऊंगा।

तुम्हारे लिए मेरा प्यार अनंत और अंतहीन है.. बस धैर्यपूर्वक बुरे समय के खत्म होने की प्रतीक्षा करें।
जय जय श्रीराम

 

🍁🍁➖हनुमान श्री राम संवाद➖🍁🍁

जब हनुमानजी सीता मैया का पता लगा लगाकर वापस लौटते है➖ तो प्रभु श्री राम  कहते है  हे हनुमान्‌! सुन, तेरे समान मेरा उपकारी देवता, मनुष्य अथवा मुनि कोई भी शरीरधारी नहीं है। मैं तेरा प्रत्युपकार (बदले में उपकार) तो क्या करूँ, मेरा मन भी तेरे सामने नहीं हो सकता॥➖श्री राम और हनुमान का अदभुद प्रसंग सभी भक्त पढ़े ➖जय हो प्रभु राम की➖

 

सुनु कपि तोहि समान उपकारी।

नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी॥🚩

 

प्रति उपकार करौं का तोरा।

सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥🚩

 

सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं।

देखेउँ करि बिचार मन माहीं॥🚩

 

पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता।

लोचन नीर पुलक अति गाता॥🚩

 

बार बार प्रभु चहइ उठावा।

प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥🚩

 

प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा।

सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥🚩

 

सावधान मन करि पुनि संकर।

लागे कहन कथा अति सुंदर॥🚩

 

कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा।

कर गहि परम निकट बैठावा॥🚩

 

भावार्थ:-(भगवान्‌ कहने लगे-) हे हनुमान्‌! सुन, तेरे समान मेरा उपकारी देवता, मनुष्य अथवा मुनि कोई भी शरीरधारी नहीं है। मैं तेरा प्रत्युपकार (बदले में उपकार) तो क्या करूँ, मेरा मन भी तेरे सामने नहीं हो सकता॥🚩

 

सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं।

देखेउँ करि बिचार मन माहीं॥🚩

 

पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता।

लोचन नीर पुलक अति गाता॥🚩

 

भावार्थ:-हे पुत्र! सुन, मैंने मन में (खूब) विचार करके देख लिया कि मैं तुझसे उऋण नहीं हो सकता। देवताओं के रक्षक प्रभु बार-बार हनुमान्‌जी को देख रहे हैं। नेत्रों में प्रेमाश्रुओं का जल भरा है और शरीर अत्यंत पुलकित है॥🚩

 

दोहा :

सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।

चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत॥🚩

 

भावार्थ:-प्रभु के वचन सुनकर और उनके (प्रसन्न) मुख तथा (पुलकित) अंगों को देखकर हनुमान्‌जी हर्षित हो गए और प्रेम में विकल होकर 'हे भगवन्‌! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो' कहते हुए श्री रामजी के चरणों में गिर पड़े॥🚩

 

बार बार प्रभु चहइ उठावा।

प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥🚩

 

प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा।

सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥🚩

 

भावार्थ:-प्रभु उनको बार-बार उठाना चाहते हैं, परंतु प्रेम में डूबे हुए हनुमान्‌जी को चरणों से उठना सुहाता नहीं। प्रभु का करकमल हनुमान्‌जी के सिर पर है। उस स्थिति का स्मरण करके शिवजी प्रेममग्न हो गए॥🚩

 

सावधान मन करि पुनि संकर।

लागे कहन कथा अति सुंदर॥🚩

 

कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा।

कर गहि परम निकट बैठावा॥🚩

 

भावार्थ:-फिर मन को सावधान करके शंकरजी अत्यंत सुंदर कथा कहने लगे- हनुमान्‌जी को उठाकर प्रभु ने हृदय से लगाया और हाथ पकड़कर अत्यंत निकट बैठा लिया॥🚩

 

कहु कपि रावन पालित लंका।

केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥🚩

 

प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना।

बोला बचन बिगत अभिमाना।।🚩

 

भावार्थ:-हे हनुमान्‌! बताओ तो, रावण के द्वारा सुरक्षित लंका और उसके बड़े बाँके किले को तुमने किस तरह जलाया? हनुमान्‌जी ने प्रभु को प्रसन्न जाना और वे अभिमानरहित वचन बोले- ॥🚩

 

साखामग कै बड़ि मनुसाई।

साखा तें साखा पर जाई॥🚩

 

नाघि सिंधु हाटकपुर जारा।

निसिचर गन बधि बिपिन उजारा॥🚩

 

भावार्थ:-बंदर का बस, यही बड़ा पुरुषार्थ है कि वह एक डाल से दूसरी डाल पर चला जाता है। मैंने जो समुद्र लाँघकर सोने का नगर जलाया और राक्षसगण को मारकर अशोक वन को उजाड़ डाला,॥🚩

 

सो सब तव प्रताप रघुराई।

नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥🚩

 

भावार्थ:-यह सब तो हे श्री रघुनाथजी! आप ही का प्रताप है। हे नाथ! इसमें मेरी प्रभुता (बड़ाई) कुछ भी नहीं है॥🚩

 

दोहा :

ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल।

तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल॥🚩

 

भावार्थ:-हे प्रभु! जिस पर आप प्रसन्न हों, उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है। आपके प्रभाव से रूई (जो स्वयं बहुत जल्दी जल जाने वाली वस्तु है) बड़वानल को निश्चय ही जला सकती है (अर्थात्‌ असंभव भी संभव हो सकता है)।।🚩

 

नाथ भगति अति सुखदायनी।

देहु कृपा करि अनपायनी॥🚩

 

सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी।

एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥🚩

 

भावार्थ:-हे नाथ! मुझे अत्यंत सुख देने वाली अपनी निश्चल भक्ति कृपा करके दीजिए। हनुमान्‌जी की अत्यंत सरल वाणी सुनकर, हे भवानी! तब प्रभु श्री रामचंद्रजी ने 'एवमस्तु' (ऐसा ही हो) कहा॥🚩

 

उमा राम सुभाउ जेहिं जाना।

ताहि भजनु तजि भाव न आना॥🚩

 

यह संबाद जासु उर आवा।

रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥🚩

 

भावार्थ:-हे उमा! जिसने श्री रामजी का स्वभाव जान लिया, उसे भजन छोड़कर दूसरी बात ही नहीं सुहाती। यह स्वामी-सेवक का संवाद जिसके हृदय में आ गया, वही श्री रघुनाथजी के चरणों की भक्ति पा गया॥🚩

 

सुनि प्रभु बचन कहहिं कपि बृंदा।

जय जय जय कृपाल सुखकंदा॥🚩

 

तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा।

कहा चलैं कर करहु बनावा॥🚩

 

भावार्थ:-प्रभु के वचन सुनकर वानरगण कहने लगे- कृपालु आनंदकंद श्री रामजी की जय हो जय हो, जय हो! तब श्री रघुनाथजी ने कपिराज सुग्रीव को बुलाया और कहा- चलने की तैयारी करो॥🚩

 

अब बिलंबु केह कारन कीजे।

तुरंत कपिन्ह कहँ आयसु दीजे॥🚩

 

कौतुक देखि सुमन बहु बरषी।

नभ तें भवन चले सुर हरषी॥🚩

 

भावार्थ:-अब विलंब किस कारण किया जाए। वानरों को तुरंत आज्ञा दो। (भगवान्‌ की) यह लीला (रावणवध की तैयारी) देखकर, बहुत से फूल बरसाकर और हर्षित होकर देवता आकाश से अपने-अपने लोक को चले॥🚩

 

➖जय हो प्रभु राम की➖जय हो राजाराम की➖

 

 

हिन्दू स्टेटस हिंदी
ऋग्वेद के अनुसार जो अनाज खेतों मे पैदा होता है, उसका बंटवारा तो देखिए...

1- जमीन से चार अंगुल भूमि का,

2- गेहूं के बाली के नीचे का पशुओं का,

3- पहली फसल की पहली बाली अग्नि की,

4- बाली से गेहूं अलग करने पर मूठ्ठी भर दाना पंछियो का,

5- गेहूं का आटा बनाने पर मुट्ठी भर आटा चीटियों का,

6- चुटकी भर गुथा आटा मछलियों का,

7- फिर उस आटे की पहली रोटी गौमाता की,

8- पहली थाली घर के बुज़ुर्ग़ो की

9- फिर हमारी थाली,

10- आखिरी रोटी कुत्ते की,

ये हमें सिखाती है , सनातन संस्कृति

और मुझे गर्व है कि मैं इस संस्कृति का हिस्सा हूँ।

जय हिंदुत्व,जय श्री राम

 

जय_श्रीराम 🚩🚩🚩

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?

आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं । आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है -

अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है अनायासेन मरणम्...... अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।

बिना देन्येन जीवनम्......... अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।

देहांते तव सानिध्यम ........अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।

देहि में परमेशवरम्..... हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।
यह प्रार्थना करें।
विशेष:
गाड़ी,लाड़ी,लड़का,लड़की, पति, पत्नी ,घर धन यह नहीं मांगना है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए ।
यह प्रार्थना है, याचना नहीं है । याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी ,पुत्र ,पुत्री ,सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।

हम प्रार्थना करते हैं प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ । अर्थना अर्थात निवेदन। ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है ,यह श्लोक बोलना है।

अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

सबसेजरूरी_बात

जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें बंद क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का ,मुखारविंद का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें । आंखों में भर ले स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें । मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें । नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।

यहीं शास्त्र हैं यहीं बड़े बुजुर्गो का कहना हैं !

सभी भक्तजनों से निवेदन है कि यदि जानकारी ज्ञान वर्धक लगे तो सनातन धर्म के प्रचार हेतु प्रभु का नाम जपते हुए पोस्ट शेयर अवश्य करें।

जय श्रीराम 🚩🚩🚩

 

खतरनाक सत्य

😀😀😀😀😀

"अगर आप रास्ते पे चल रहे है और आपको वहां पड़ी हुई दो पत्थर की मुर्तिया मिले

 

1) राम की

 

और

 

2)रावण की

 

और आपको एक मूर्ति उठाने का कहा जाए तो अवश्य आप राम की मूर्ति उठा कर घर लेके जाओगे।

क्यों की राम सत्य , निष्ठा,

सकारात्मकता के प्रतिक हे और रावण नकारात्मकता का प्रतिक हे।

 

फिरसे आप रास्ते पे चल रहे हो और दो मुर्तिया मिले

राम और रावण की

पर अगर "राम की मूर्ति पत्थर" की और "रावण की सोने "की हो

और एक मूर्ति उठाने को कहा जाए तो आप राम की मूर्ति छोड़ कर  रावण की सोने की मूर्तिही उठाओगे

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मतलब

हम सत्य और असत्य,

सकारात्मक और नकारात्मक

अपनी सुविधा और लाभ के अनुसार तय करते हे।

 

☺☺☺☺

 

99% प्रतिशत लोग भगवान को सिर्फ लाभ और डर की वजह से पूजते है. .और इस बात से वह 99% प्रतिशत लोग भी सहमत होंगे मगर शेअर नही करेंगे क्योंकी .....

.

 

एक ही डर

"लोग क्या कहेंगे".

 

😄😄😁😁

 

लोग क्या सोचेंगे  ? ? ?

 

25 साल की उम्र तक हमें परवाह नहीँ होती कि  "लोग क्या सोचेंगे  ? ? "

 

50 साल की उम्र तक इसी डर में जीते हैं  कि  " लोग क्या सोचेंगे  ! ! "

 

50 साल के बाद पता चलता है कि   " हमारे बारे में कोई सोच ही नहीँ रहा था ! ! ! "😜😜😜😜

 

Life is beautiful, enjoy it everyday.

 

*सबसे बडा रोग...*

*क्या कहेंगे लोग...*

 

कलेंडर बदलिए अपनी संस्कृति नही। अपनी संस्कृति की झलक को अवश्य पढ़ें और साझा करें ।।

1 जनवरी को क्या नया हो रहा है ?????* न ऋतु बदली.. न मौसम* न कक्षा बदली... न सत्र* न फसल बदली...न खेती* न पेड़ पौधों की रंगत* न सूर्य चाँद सितारों की दिशा* ना ही नक्षत्र।।

1 जनवरी आने से पहले ही सब नववर्ष की बधाई देने लगते हैं। मानो कितना बड़ा पर्व हो।

नया केवल एक दिन ही नहीकुछ दिन तो नई अनुभूति होनी ही चाहिए। आखिर हमारा देश त्योहारों का देश है।

ईस्वी संवत का नया साल 1 जनवरी को और भारतीय नववर्ष (विक्रमी संवत) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है।

 

आईये देखते हैं दोनों का तुलनात्मक अंतर:

 

1. प्रकृति-एक जनवरी को कोई अंतर नही जैसा दिसम्बर वैसी जनवरी.. वही चैत्र मास में चारो तरफ फूल खिल जाते हैं, पेड़ो पर नए पत्ते आ जाते हैं। चारो तरफ हरियाली मानो प्रकृति नया साल मना रही हो I

2. मौसम,वस्त्र-दिसम्बर और जनवरी में वही वस्त्र, कंबल, रजाई, ठिठुरते हाथ पैर.. लेकिनचैत्र मास में सर्दी जा रही होती है, गर्मी का आगमन होने जा रहा होता है I

3. विद्यालयो का नया सत्र- दिसंबर जनवरी मे वही कक्षा कुछ नया नहीं..जबकि मार्च अप्रैल में स्कूलो का रिजल्ट आता है नई कक्षा नया सत्र यानि विद्यालयों में नया साल I

4. नया वित्तीय वर्ष-दिसम्बर-जनबरी में कोई खातो की क्लोजिंग नही होती.. जबकि 31 मार्च को बैंको की (audit) क्लोजिंग होती है नए बही खाते खोले जाते है I सरकार का भी नया सत्र शुरू होता है I

5. कलैण्डर-जनवरी में नया कलैण्डर आता है..चैत्र में नया पंचांग आता है I उसी से सभी भारतीय पर्व, विवाह और अन्य महूर्त देखे जाते हैं I इसके बिना हिन्दू समाज जीवन की कल्पना भी नही कर सकता इतना महत्वपूर्ण है ये कैलेंडर यानि पंचांग I

6. किसानो का नया साल- दिसंबर-जनवरी में खेतो में वही फसल होती है..जबकि मार्च-अप्रैल में फसल कटती है नया अनाज घर में आता है तो किसानो का नया वर्ष और उत्साह I

7. पर्व मनाने की विधि-31 दिसम्बर की रात नए साल के स्वागत के लिए लोग जमकर शराब पीते है, हंगामा करते है, रात को पीकर गाड़ी चलने से दुर्घटना की सम्भावना, रेप जैसी वारदात, पुलिस प्रशासन बेहाल और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश..जबकि भारतीय नववर्ष व्रत से शुरू होता है पहला नवरात्र होता है घर घर मे माता रानी की पूजा होती है I शुद्ध सात्विक वातावरण बनता है I

8. ऐतिहासिक महत्त्व- 1 जनवरी का कोई ऐतिहासिक महत्व नही है..जबकि चैत्र प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् की शुरुआत, भगवान झूलेलाल का जन्म, नवरात्रे प्रारंम्भ, ब्रम्हा जी द्वारा सृष्टि की रचना इत्यादि का संबंध इस दिन से है I

एक जनवरी को अंग्रेजी कलेंडर की तारीख और अंग्रेज मानसिकता के लोगो के अलावा कुछ नही बदला..अपना नव संवत् ही नया साल है I

जब ब्रह्माण्ड से लेकर सूर्य चाँद की दिशा, मौसम, फसल, कक्षा, नक्षत्र, पौधों की नई पत्तिया, किसान की नई फसल, विद्यार्थीयों की नई कक्षा, मनुष्य में नया रक्त संचरण आदि परिवर्तन होते है। जो विज्ञान आधारित है I

अपनी मानसिकता को बदले I विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना को पहचाने।

स्वयं सोचे की क्यों मनाये हम 1 जनवरी को नया वर्ष..???"

एक जनवरी को कैलेंडर बदलें.. अपनी संस्कृति नहीं"आओ जागेँ जगायेँ, भारतीय संस्कृति अपनायेँ और आगे बढ़े I।।

जय श्री राम जय सनातन धर्म।।⛳🕉⛳🕉⛳🕉⛳

 

बन्द मुठ्ठी लाख की !!

एक समय एक राज्य में राजा ने घोषणा की कि वह राज्य के मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा।
इतना सुनते ही मंदिर के पुजारी ने मंदिर की रंग रोगन और सजावट करना शुरू कर दिया, क्योंकि राजा आने वाले थे। इस खर्चे के लिए उसने ₹6000/- का कर्ज लिया ।
नियत तिथि पर राजा मंदिर में दर्शन, पूजा, अर्चना के लिए पहुंचे और पूजा अर्चना करने के बाद आरती की थाली में चार आने दक्षिणा स्वरूप रखें और अपने महल में प्रस्थान कर गए !
पूजा की थाली में चार आने देखकर पुजारी बड़ा नाराज हुआ, उसे लगा कि राजा जब मंदिर में आएंगे तो काफी दक्षिणा मिलेगी पर चार आने !!
बहुत ही दुखी हुआ कि कर्ज कैसे चुका पाएगा, इसलिए उसने एक उपाय सोचा !!!
गांव भर में ढिंढोरा पिटवाया की राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है। नीलामी पर उसने अपनी मुट्ठी में चार आने रखे पर मुट्ठी बंद रखी और किसी को दिखाई नहीं।
लोग समझे की राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली रु10,000/- से शुरू हुई।
रु 10,000/- की बोली बढ़ते बढ़ते रु50,000/- तक पहुंची और पुजारी ने वो वस्तु फिर भी देने से इनकार कर दिया। यह बात राजा के कानों तक पहुंची ।
राजा ने अपने सैनिकों से पुजारी को बुलवाया और पुजारी से निवेदन किया कि वह मेरी वस्तु को नीलाम ना करें मैं तुम्हें रु50,000/-की बजाय सवा लाख रुपए देता हूं और इस प्रकार राजा ने सवा लाख रुपए देकर अपनी प्रजा के सामने अपनी इज्जत को बचाया !
तब से यह कहावत बनी बंद मुट्ठी सवा लाख की खुल गई तो खाक की !!
यह मुहावरा आज भी प्रचलन में है।
ईश्वर ने सृष्टि की रचना करते समय तीन विशेष रचना की...
1. अनाज में कीड़े पैदा कर दिए, वरना लोग इसका सोने और चाँदी की तरह संग्रह करते।

2. मृत्यु के बाद देह (शरीर) में दुर्गन्ध उत्पन्न कर दी, वरना कोई अपने प्यारों को कभी भी जलाता या दफ़न नहीं करता।

3. जीवन में किसी भी प्रकार के संकट या अनहोनी के साथ रोना और समय के साथ भुलना दिया, वरना जीवन में निराशा और अंधकार ही रह जाता, कभी भी आशा, प्रसन्नता या जीने की इच्छा नहीं होती।

जीना सरल है...
प्यार करना सरल है..
हारना और जीतना भी सरल है...
तो फिर कठिन क्या है?
सरल होना बहुत कठिन है।
🙏🙏

 

धार्मिक स्टेटस हिंदी
*🔆🏵 जय श्री राधे कृष्णा जी🏵🔆*

*किसी ने बिहारी जी से पूछा-"* *आपके पास जो आ आपके चरणों में रोते है तो आप* *क्या करते हो उनके आंसूओं का?*

*बिहारी जी ने मुस्कराते हुए* *कहा-" मैं तो करूणा का सागर हूं*

*उन आंसूओं की बूंद को*

*खुशियों के मोती बना लौटा*

*देता हूं*

*इसलिए अगर रोने का मन हो तो*

*बांके बिहारी के आगे रो लेना*

*पर संसार के आगे कभी मत रोना*

*🌀🔕।।राधे राधे जी👣।।🔕🌀*

 

बहुत लाजवाब पोस्ट.
😇😇😇😇

एक दिन कॉलेज में प्रोफेसर ने विद्यर्थियों से पूछा कि इस संसार में जो कुछ भी है उसे भगवान ने ही बनाया है न?

सभी ने कहा, “हां भगवान ने ही बनाया है।“

प्रोफेसर ने कहा कि इसका मतलब ये हुआ कि बुराई भी भगवान की बनाई चीज़ ही है।

प्रोफेसर ने इतना कहा तो एक विद्यार्थी उठ खड़ा हुआ और उसने कहा कि इतनी जल्दी इस निष्कर्ष पर मत पहुंचिए सर।

प्रोफेसर ने कहा, क्यों? अभी तो सबने कहा है कि सबकुछ भगवान का ही बनाया हुआ है फिर तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?

विद्यार्थी ने कहा कि सर, मैं आपसे छोटे-छोटे दो सवाल पूछूंगा। फिर उसके बाद आपकी बात भी मान लूंगा।

प्रोफेसर ने कहा, "तुम संजय सिन्हा की तरह सवाल पर सवाल करते हो। खैर पूछो।"

विद्यार्थी ने पूछा , "सर क्या दुनिया में ठंड का कोई वजूद है?"

प्रोफेसर ने कहा, बिल्कुल है। सौ फीसदी है। हम ठंड को महसूस करते हैं।

विद्यार्थी ने कहा, "नहीं सर, ठंड कुछ है ही नहीं। ये असल में गर्मी की अनुपस्थिति का अहसास भर है। जहां गर्मी नहीं होती, वहां हम ठंड को महसूस करते हैं।"

प्रोफेसर चुप रहे।

विद्यार्थी ने फिर पूछा, "सर क्या अंधेरे का कोई अस्तित्व है?"

प्रोफेसर ने कहा, "बिल्कुल है। रात को अंधेरा होता है।"

विद्यार्थी ने कहा, "नहीं सर। अंधेरा कुछ होता ही नहीं। ये तो जहां रोशनी नहीं होती वहां अंधेरा होता है।

प्रोफेसर ने कहा, "तुम अपनी बात आगे बढ़ाओ।"

विद्यार्थी ने फिर कहा, "सर आप हमें सिर्फ लाइट एंड हीट (प्रकाश और ताप) ही पढ़ाते हैं। आप हमें कभी डार्क एंड कोल्ड (अंधेरा और ठंड) नहीं पढ़ाते। फिजिक्स में ऐसा कोई विषय ही नहीं। सर, ठीक इसी तरह ईश्वर ने सिर्फ अच्छा-अच्छा बनाया है। अब जहां अच्छा नहीं होता, वहां हमें बुराई नज़र आती है। पर बुराई को ईश्वर ने नहीं बनाया। ये सिर्फ अच्छाई की अनुपस्थिति भर है।"

दरअसल दुनिया में कहीं बुराई है ही नहीं। ये सिर्फ प्यार, विश्वास और ईश्वर में हमारी आस्था की कमी का नाम है।

ज़िंदगी में जब और जहां मौका मिले अच्छाई बांटिए। अच्छाई बढ़ेगी तो बुराई होगी ही नहीं।
🚩🚩🚩

 

"मन_और_पानी_"

मन भी पानी जैसा ही हैं ।

जिस तरह पानी फर्श पर गिर जाए, तो कहीं भी चला जाता है ।

उसी तरह मन भी चंचल हैं । कभी भी कहीं भी चला जाता है ।

मन को हमेशा सत्संग और भजन-सिमरन के साथ जोड़े रखना है ।

जैसे पानी को फ्रिज में रखने से ठंडा रहता है और आॅईस बॉक्स रखने से सिमट कर बर्फ में परिवर्तित हो जाता है ।

वैसे ही मन फ्रिज रूपी सत्संग में ठंडा और शांत रहता है और भजन-सिमरन करने से सब सिमट कर एक होकर परमात्मा में लीन हो जाता है ।

जैसे बर्फ को बाहर धूप में रखा जाए तो वह पिघल कर पानी हो कर इधर-उधर हो कर बिखर जाता है ।

वैसे ही हम लोग भी माया रूपी धूप में सत्संग से दूर होकर बिखर जायेंगे ।

इसलिए हमें हमेशा सत्संग और भजन-सिमरन से खुद को जोड़ कर रखना हैं।🍁

।। जय श्री महाँकाल ।।
कितने आश्चर्य की बात है....
भारत के 29 राज्यों के नाम..
श्री. संत तुलसीदास
के इक दोहे में समाई हुई है।
क्या संयोग बना है
राम नाम जपते अत्रि मत गुसिआउ।
पंक में उगोहमि अहि के छबि झाउ।।

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जिसने खोज करी होगी उसको नमन है
रा - राजस्थान ! पं- पंजाब
म - महाराष्ट्र ! क- कर्नाटक
ना - नागालैंड ! मे- मेघालय
म - मणिपुर ! उ- उत्तराखंड
ज - जम्मू कश्मीर ! गो- गोवा
प - पश्चिम बंगाल ! ह- हरियाणा
ते - तेलंगाना ! मि- मिजोरम
अ - असम ! अ- अरुणाचल प्रदेश
त्रि - त्रिपुरा ! हि- हिमाचल प्रदेश
म - मध्य प्रदेश ! के- केरल
त - तमिलनाडु ! छ- छत्तीसगढ़
गु - गुजरात ! बि- बिहार
सि - सिक्किम ! झा- झारखंड
आ- आंध्र प्रदेश ! उ- उड़ीसा
उ - उत्तर प्रदेश !

अत्यंत आश्चर्यजनक...
🌹🕉️🌹
" दक्षिण का एक ग्रन्थ "



क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो रामायण की कथा पढ़ी जाए और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े

तो कृष्ण भागवत की कथा सुनाई दे।



जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ "राघवयादवीयम्" ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है।



इस ग्रन्थ को

‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे

पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और

विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक।



पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ "राघवयादवीयम।"



उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः


वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।

रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥


अर्थातः

मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो

जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।



विलोमम्:



सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।

यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

 

अर्थातः

मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के

चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ

विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।



" राघवयादवीयम" के ये 60 संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं:-



राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।

रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥



विलोमम्:

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।

यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥



साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।

पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ २॥

 

विलोमम्:

वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।

राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ २॥



कामभारस्स्थलसारश्रीसौधासौघनवापिका ।

सारसारवपीनासरागाकारसुभूरुभूः ॥ ३॥



विलोमम्:

भूरिभूसुरकागारासनापीवरसारसा ।

कापिवानघसौधासौ श्रीरसालस्थभामका ॥ ३॥



रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।

नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥ ४॥



विलोमम्:

यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।

तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥ ४॥


यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्येसौ ।

तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता त्रातम् ॥ ५॥


विलोमम्:

तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं ख्यातं ।

सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो योधेगायन् ॥ ५॥

 

मारमं सुकुमाराभं रसाजापनृताश्रितं ।

काविरामदलापागोसमावामतरानते ॥ ६॥

 

विलोमम्:

तेन रातमवामास गोपालादमराविका ।

तं श्रितानृपजासारंभ रामाकुसुमं रमा ॥ ६॥


रामनामा सदा खेदभावे दया-वानतापीनतेजारिपावनते ।

कादिमोदासहातास्वभासारसा-मेसुगोरेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥


विलोमम्:

मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-सारसा भास्वताहासदामोदिका ।

तेन वा पारिजातेन पीता नवायादवे भादखेदासमानामरा ॥ ७॥


सारसासमधाताक्षिभूम्नाधामसु सीतया ।

साध्वसाविहरेमेक्षेम्यरमासुरसारहा ॥ ८॥


विलोमम्:

हारसारसुमारम्यक्षेमेरेहविसाध्वसा ।

यातसीसुमधाम्नाभूक्षिताधामससारसा ॥ ८॥



सागसाभरतायेभमाभातामन्युमत्तया ।

सात्रमध्यमयातापेपोतायाधिगतारसा ॥ ९॥



विलोमम्:

सारतागधियातापोपेतायामध्यमत्रसा ।

यात्तमन्युमताभामा भयेतारभसागसा ॥ ९॥



तानवादपकोमाभारामेकाननदाससा ।

यालतावृद्धसेवाकाकैकेयीमहदाहह ॥ १०॥



विलोमम्:

हहदाहमयीकेकैकावासेद्ध्वृतालया ।

सासदाननकामेराभामाकोपदवानता ॥ १०॥



वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरादहो ।

भास्वरस्थिरधीरोपहारोरावनगाम्यसौ ॥ ११॥



विलोमम्:

सौम्यगानवरारोहापरोधीरस्स्थिरस्वभाः ।

होदरादत्रापितह्रीसत्यासदनमारवा ॥ ११॥



यानयानघधीतादा रसायास्तनयादवे ।

सागताहिवियाताह्रीसतापानकिलोनभा ॥ १२॥



विलोमम्:

भानलोकिनपातासह्रीतायाविहितागसा ।

वेदयानस्तयासारदाताधीघनयानया ॥ १२॥



रागिराधुतिगर्वादारदाहोमहसाहह ।

यानगातभरद्वाजमायासीदमगाहिनः ॥ १३॥



विलोमम्:

नोहिगामदसीयामाजद्वारभतगानया ।

हह साहमहोदारदार्वागतिधुरागिरा ॥ १३॥

 

यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।

सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥ १४॥



विलोमम्:

यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।

गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥



दण्डकां प्रदमोराजाल्याहतामयकारिहा ।

ससमानवतानेनोभोग्याभोनतदासन ॥ १५॥



विलोमम्:

नसदातनभोग्याभो नोनेतावनमास सः ।

हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥



सोरमारदनज्ञानोवेदेराकण्ठकुंभजम् ।

तं द्रुसारपटोनागानानादोषविराधहा ॥ १६॥



विलोमम्:

हाधराविषदोनानागानाटोपरसाद्रुतम् ।

जम्भकुण्ठकरादेवेनोज्ञानदरमारसः ॥ १६॥



सागमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।

न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७ विलोमम्:

तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।

सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥ १७॥



तां स गोरमदोश्रीदो विग्रामसदरोतत ।

वैरमासपलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥



विलोमम्:

केशवं विरसानाविराहालापसमारवैः ।

ततरोदसमग्राविदोश्रीदोमरगोसताम् ॥ १८॥



गोद्युगोमस्वमायोभूदश्रीगखरसेनया ।

सहसाहवधारोविकलोराजदरातिहा ॥ १९॥



विलोमम्:

हातिरादजरालोकविरोधावहसाहस ।

यानसेरखगश्रीद भूयोमास्वमगोद्युगः ॥ १९॥



हतपापचयेहेयो लंकेशोयमसारधीः ।

राजिराविरतेरापोहाहाहंग्रहमारघः ॥ २०॥



विलोमम्:

घोरमाहग्रहंहाहापोरातेरविराजिराः ।

धीरसामयशोकेलं यो हेये च पपात ह ॥ २०॥



ताटकेयलवादेनोहारीहारिगिरासमः ।



हासहायजनासीतानाप्तेनादमनाभुवि  ॥ २१॥



विलोमम्:

विभुनामदनाप्तेनातासीनाजयहासहा ।

ससरागिरिहारीहानोदेवालयकेटता ॥ २१॥



भारमाकुदशाकेनाशराधीकुहकेनहा ।

चारुधीवनपालोक्या वैदेहीमहिताहृता ॥ २२॥



विलोमम्:

ताहृताहिमहीदेव्यैक्यालोपानवधीरुचा ।

हानकेहकुधीराशानाकेशादकुमारभाः ॥ २२॥



हारितोयदभोरामावियोगेनघवायुजः ।

तंरुमामहितोपेतामोदोसारज्ञरामयः ॥ २३॥



विलोमम्:

योमराज्ञरसादोमोतापेतोहिममारुतम् ।

जोयुवाघनगेयोविमाराभोदयतोरिहा ॥ २३॥



भानुभानुतभावामासदामोदपरोहतं ।

तंहतामरसाभक्षोतिराताकृतवासविम् ॥ २४॥



विलोमम्:

विंसवातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।

तं हरोपदमोदासमावाभातनुभानुभाः ॥ २४॥



हंसजारुद्धबलजापरोदारसुभाजिनि ।

राजिरावणरक्षोरविघातायरमारयम् ॥ २५॥



विलोमम्:

यं रमारयताघाविरक्षोरणवराजिरा ।

निजभासुरदारोपजालबद्धरुजासहम् ॥ २५॥



सागरातिगमाभातिनाकेशोसुरमासहः ।

तंसमारुतजंगोप्ताभादासाद्यगतोगजम् ॥ २६॥



विलोमम्:

जंगतोगद्यसादाभाप्तागोजंतरुमासतं ।

हस्समारसुशोकेनातिभामागतिरागसा ॥ २६॥



वीरवानरसेनस्य त्राताभादवता हि सः ।

तोयधावरिगोयादस्ययतोनवसेतुना ॥ २७॥



विलोमम्

नातुसेवनतोयस्यदयागोरिवधायतः ।

सहितावदभातात्रास्यनसेरनवारवी ॥ २७॥



हारिसाहसलंकेनासुभेदीमहितोहिसः ।

चारुभूतनुजोरामोरमाराधयदार्तिहा ॥ २८॥



विलोमम्

हार्तिदायधरामारमोराजोनुतभूरुचा ।

सहितोहिमदीभेसुनाकेलंसहसारिहा ॥ २८॥



नालिकेरसुभाकारागारासौसुरसापिका ।

रावणारिक्षमेरापूराभेजे हि ननामुना ॥ २९॥



विलोमम्:

नामुनानहिजेभेरापूरामेक्षरिणावरा ।

कापिसारसुसौरागाराकाभासुरकेलिना ॥ २९॥



साग्र्यतामरसागारामक्षामाघनभारगौः ॥

निजदेपरजित्यास श्रीरामे सुगराजभा ॥ ३०॥



विलोमम्:

भाजरागसुमेराश्रीसत्याजिरपदेजनि ।स

गौरभानघमाक्षामरागासारमताग्र्यसा ॥ ३०॥



॥ इति श्रीवेङ्कटाध्वरि कृतं श्री  ।।



कृपया अपना थोड़ा सा कीमती वक्त निकाले और उपरोक्त श्लोको को गौर से अवलोकन करें की दुनिया में कहीं भी ऐसा नही पाया गया ग्रंथ है ।



शत् शत् प्रणाम

🙏

ऐसे रचनाकार को।

 

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