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भजन और भोजन
भजन और भोजन

एक भिखारी, एक सेठ के घर के बाहर खड़ा होकर भजन गा रहा था और बदले में खाने को रोटी मांग रहा था।*

*सेठानी काफ़ी देर से उसको कह रही थी ,आ रहीहूं |*

*रोटी हाथ मे थी पर फ़िर भी कह रही थी की रुको आ रही हूं | भिखारी भजन गा रहा था और रोटी मांग रहा था।*

*सेठ ये सब देख रहा था , पर समझ नही पा रहा था,*

*आखिर सेठानी से बोला - रोटी हाथ में लेकर खडी हो, वो बाहर मांग रहा हैं , उसे कह रही हो आ रही हूं तो उसे रोटी क्यो नही दे रहीहो ?*

*सेठानी बोली हां रोटी दूंगी, पर क्या है ना की मुझे उसका भजन बहुत प्यारा लग रहा हैं, अगर उसको रोटी दूंगी तो वो आगे चला जायेगा|*

*मुझे उसका भजन और सुनना हैं !!*

*यदि प्रार्थना के बाद भी भगवान आपकी नही सुन रहा हैं तो समझना की उस सेठानी की तरह प्रभु को आपकी प्रार्थना प्यारी लग रही हैं,*

*इसलिये इंतज़ार करो और प्रार्थना करते रहो।*

*जीवन मे कैसा भी दुख और कष्ट आये पर भक्ति मत छोड़िए।*

*क्या कष्ट आता है तो आप भोजन करना छोड देते है?*

*क्या बीमारी आती है तो आप सांस लेना छोड देते हैं?*

*नही ना ?*

*फिर जरा सी तकलीफ़ आने पर आप भक्ति करना क्यों छोड़ देते हो ?*

*कभी भी दो चीज मत छोड़िये- - भजन और भोजन !*

*भोजन छोड़ दोंगे तो ज़िंदा नहीं रहोगे, भजन छोड़ दोंगे तो कहीं के नही रहोगे।*

*सही मायने में भजन ही भोजन है|*

*🌹जय जय श्री राधे*🌹

 

डमरू
*डमरू*
एक बार की बात है, देवताओं के राजा इंद्र ने कृषकों से किसी कारण से नाराज होकर बारह वर्षों तक बारिश न करने का निर्णय लेकर किसानों से कहा-" अब आप लोग बारह वर्षों तक फसल नही ले सकेंगे।"

सारे कृषकों ने चिंतातुर होकर एक साथ इंद्रदेव से वर्षा करवाने प्रार्थना की । इंद्र ने कहा -" यदि भगवान शंकर अपना डमरू बजा देंगे तो वर्षा हो सकती है।"  इंद्र ने किसानों को ये उपाय तो बताया लेकिन साथ में गुप्तवार्ता कर भगवान शिव से  ये आग्रह कर दिया कि आप किसानों से सहमत न होना।

जब किसान भगवान शंकर के पास पहुँचे तो भगवान ने उन्हें कहा -" डमरू तो बारह वर्ष बाद ही बजेगा।"

किसानों ने निराश होकर बारह वर्षों तक खेती न करने का निर्णय लिया।

उनमें से एक किसान था जिसने  खेत में अपना काम करना नहीं छोड़ा। वो नियमति रूप से खेत जोतना,  निंदाई, गुड़ाई, बीज बोने का   काम कर रहा था। ये माजरा देख कर गाँव के किसान उसका मज़ाक उड़ाने लगे। कुछ वर्षों बाद गाँव वाले इस परिश्रमी किसान से  पूछने लगे -" जब आपको पता है कि बारह वर्षों तक वर्षा नही होने वाली तो अपना समय और ऊर्जा क्यों नष्ट कर रहे हो?"

उस किसान ने उत्तर दिया- *मैं,भी जानता हूँ कि बारह वर्ष फसल नही आने वाली लेकिन मैं, ये काम अपने अभ्यास के लिए कर रहा हूँ।**क्योंकि बारह साल कुछ न करके मैं,खेती किसानी का काम भूल जाऊँगा,मेरे शरीर की श्रम करने की आदत छूट जाएगी। इसीलिए ये काम मैं, नियमित कर रहा हूँ ताकि जब बारह साल बाद वर्षा होगी तब मुझे अपना काम करने के लिए कोई कठिनाई न हो।

ये तार्किक चर्चा माता पार्वती भी बड़े कौतूहल के साथ सुन रही थी। बात सुनने के बाद माता,  भगवान शिव से सहज    बोली - *"प्रभु,आप भी बारह वर्षों के बाद डमरू बजाना भूल सकते हैं।"*

*माता पार्वती की बात सुन कर   भोले बाबा चिंतित हो गए।अपना डमरू बज रहा या नही ये देखने के लिए उन्होंने डमरू उठाया और बजाने का प्रयत्न करने लगे।*

जैसे ही डमरू बजा बारिश शुरू हो गई.... जो किसान अपने खेत में नियमित रूप से काम कर  रहा था उसके खेत में भरपूर फसल आयी। बाकी के किसान पश्याताप के अलावा कुछ न कर सके।

*दो सप्ताह, दो माह, दो वर्षों के बाद कभी तो लाकडाउन खत्म होगा, सामान्य जनजीवन शुरू होगा।*

*केवल नकारात्मक बातों पर अपना ध्यान लगाने के बजाय  हम अपने कार्य-  व्यवसाय से संबंधित कुशलताओं की धार पैनी करने का,  अपनी अभिरुचि का अभ्यास करते रहेंगे।*

*डमरू कभी भी बज सकता है।*

*।।जय जय श्री राम।।*

*।।हर हर महादेव।।*

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सत्संग की महिमा
सत्संग की महिमा

एक  बार देवर्षि नारद भगवान विष्णु के पास गए और प्रणाम करते हुए बोले, “भगवान मुझे सत्संग की महिमा सुनाइये।”

भगवान मुस्कराते हुए बोले, नारद! तुम यहां से आगे जाओ, वहां इमली के पेड़ पर एक रंगीन प्राणी मिलेगा।

वह सत्संग की महिमा जानता है, वही तुम्हें भी समझाएगा भी।

नारद जी खुशी-खुशी इमली के पेड़ के पास गए और गिरगिट से बातें करने लगे।

उन्होंने गिरगिट से सत्संग की महिमा के बारे में पूछा। सवाल सुनते ही वह गिरगिट पेड़ से नीचे गिर गया और छटपटाते हुए प्राण छोड़ दिए।

नारदजी आश्चर्यचकित होकर लौट आए और भगवान को सारा वृत्तांत सुनाया।

भगवान ने मुस्कराते हुए कहा, इस बार तुम नगर के उस धनवान के घर जाओ और वहां जो तोता पिंजरे में दिखेगा, उसी से सत्संग की महिमा पूछ लेना।

नारदजी क्षण भर में वहां पहुंच गए और तोते से सत्संग का महत्व पूछा। थोड़ी देर बाद ही तोते की आंखें बंद हो गईं और उसके भी प्राणपखेरू उड़ गए।

इस बार तो नारद जी भी घबरा गए और दौड़े-दौड़े भगवान कृष्ण के पास पहुंचे।

नारद जी कहा, भगवान यह क्या लीला है। क्या सत्संग का नाम सुनकर मरना ही सत्संग की महिमा है?”

भगवान हंसते हुए बोले, यह बात भी तुमको जल्द ही समझ आ जाएगी।

इस बार तुम नगर के राजा के महल में जाओ और उसके नवजात पुत्र से अपना प्रश्न पूछो।”नारदजी तो थरथर कांपने लगे और बोले, अभी तक तो पक्षी ही अपने प्राण छोड़ रहे थे। इस बार अगर वह नवजात राजपुत्र मर गया तो राजा मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा।” भगवान ने नारदजी को अभयदान दिया।

नारदजी दिल मुट्ठी में रखकर राजमहल में आए। वहां उनका बड़ा सत्कार किया गया। अब तक राजा को कोई संतान नहीं थी। अतः पुत्र के जन्म पर बड़े आनन्दोल्लास से उत्सव मनाया जा रहा था।

नारदजी ने डरते-डरते राजा से पुत्र के बारे में पूछा। नारदजी को राजपुत्र के पास ले जाया गया। पसीने से तर होते हुए, मन-ही-मन श्रीहरि का नाम लेते हुए नारदजी ने राजपुत्र से सत्संग की महिमा के बारे में प्रश्न किया तो वह नवजात शिशु हंस पड़ा और बोलाः “महाराज! चंदन को अपनी सुगंध और अमृत को अपने माधुर्य का पता नहीं होता। ऐसे ही आप अपनी महिमा नहीं जानते, इसलिए मुझसे पूछ रहे हैं।

वास्तव में आप ही के क्षणमात्र के संग से मैं गिरगिट की योनि से मुक्त हो गया और आप ही के दर्शनमात्र से तोते की क्षुद्र योनि से मुक्त होकर इस मनुष्य जन्म को पा सका।

आपके सान्निध्यमात्र से मेरी कितनी सारी योनियां कट गईं और मैं सीधे मानव-तन में ही नहीं पहुंचा अपीतू राजपुत्र भी बना।

यह सत्संग का ही अदभुत प्रभाव है। बालक बोला- हे ऋषिवर, अब मुझे आशीर्वाद दें कि मैं मनुष्य जन्म के परम लक्ष्य को पा लूं।

नारदजी ने खुशी-खुशी आशीर्वाद दिया और भगवान श्री हरि के पास जाकर सब कुछ बता दिया। भगवान ने कहा, सचमुच, सत्संग की बड़ी महिमा है। संत का सही गौरव या तो संत जानते हैं या उनके सच्चे प्रेमी भक्त...🙏🙏🙏

 

भगवान से मिलन
भगवान से मिलन

एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद किया करता था। उसे भगवान् के बारे में कुछ भी पता नही था, पर मिलने की तमन्ना, भरपूर थी, उसकी चाहत थी कि एक समय की रोटी वह भगवान के साथ बैठकर खाये।

एक दिन उसने एक थैले में 5, 6 रोटियाँ रखीं और भगवान् को को ढूँढने के लिये निकल पड़ा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया, संध्या का समय हो गया।

उसने देखा एक नदी के तट पर एक बुजुर्ग माता बैठी हुई हैं, जिनकी आँखों में बहुत ही गजब की चमक थी, प्यार था, किसी की तलाश थी, और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहाँ बैठी उसका रास्ता देख रहीं हों।

वह मासूम बालक बुजुर्ग माता के पास जा कर बैठ गया, अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया।

फिर उसे कुछ याद आया तो उसने अपना रोटी वाला हाथ बूढी माता की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा, बूढी माता ने रोटी ले ली, माता के झुर्रियों वाले चेहरे पे अजीब सी खुशी आ गई, आँखों में खुशी के आँसू भी थे।

बच्चा माता को देखे जा रहा था, जब माता ने रोटी खा ली तो बच्चे ने एक और रोटी माता को दे दी। माता अब बहुत खुश थी। बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह केे पल बिताये।

जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाजत लेकर घर की ओर चलने लगा। और जब भी वह बार- बार पीछे मुडकर देखता ! तो पाता बुजुर्ग माता उसी की ओर देख रही होती हैं।

बच्चा घर पहुँचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देखकर जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी, बच्चा बहूत खुश था।

माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो खुशी का कारण पूछा, तो बच्चे ने बताया, "माँ ! आज मैंने भगवान के साथ बैठकर रोटी खाई, आपको पता है माँ उन्होंने भी मेरी रोटी खाई, पर माँ भगवान् बहुत बूढ़े हो गये हैं, मैं आज बहुत खुश हूँ माँ।"

उधर बुजुर्ग माता भी जब अपने घर पहुँची तो गाँव वालों ने देखा माता जी बहुत खुश हैं, तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा ?

माता जी बोलीं, "मैं दो दिन से नदी के तट पर अकेली भूखी बैठी थी, मुझे विश्वास था भगवान आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे। आज भगवान् आए थे, उन्होंने मेरे साथ बैठकर रोटी खाई मुझे भी बहुत प्यार से खिलाई, बहुत प्यार से मेरी ओर देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया, भगवान बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।"

इस कहानी का अर्थ बहुत गहराई वाला है। वास्तव में बात सिर्फ इतनी है कि दोनों के दिलों में ईश्वर के लिए अगाध सच्चा प्रेम था, और प्रभु ने दोनों को, दोनों के लिये, दोनों में ही (ईश्वर) खुद को भेज दिया। जब मन ईश्वर भक्ति में रम जाता है तो हमें हर एक जीव में वही नजर आता है।  भक्त के लिए तो सब कुछ भगवान का ही है और सब उसी के तो बंदे हैं।  बस भाव का ही तो खेल है।

*जय श्री राधेकृष्ण*

🙏 *सदैव प्रसन्न रहें* 🙏

 

अघमोचन-अघमोचन
अघमोचन-अघमोचन

एक अनपढ़(गँवार) आदमी एक महात्मा जी के पास जाकर बोला ‘‘महाराज ! हमको कोई सीधा-साधा नाम बता दो, हमे भगवान का नाम लेना है।

महात्माजी ने कहा- तुम ‘अघमोचन-अघमोचन’ ("अघ" माने पाप, "मोचन" माने छुड़ाने वाला) नाम लिया करो ।’’

अब वह बेचारा गाँव का गँवार आदमी "अघमोचन-अघमोचन" करता हुआ चला तो पर गाँव जाते-जाते "अ" भूल गया। वह 'घमोचन-घमोचन" बोलने लगा।एक दिन वह हल जोत रहा था और "घमोचन-घमोचन" कर रहा था, उधर वैकुंठ लोक में भगवान भोजन करने बैठे ही थे कि घमोचन नाम का उच्चारण सुन उनको हँसी आ गयी।

लक्ष्मीजी ने पूछा-‘प्रभू! आप क्यों हँस रहे हो.?भगवान बोले- आज हमारा भक्त एक ऐसा नाम ले रहा है कि वैसा नाम तो किसी शास्त्र में है ही नही उसी को सुनकर मुझे हँसी आ गयी है।

‘‘लक्षमी जी बोली- प्रभू! तब तो हम उसको देखेंगे और सुनेंगेे कि वह कैसा भक्त है और कौन-सा नाम ले रहा है ।’’लक्ष्मी-नारायण दोनों उसी खेत के पास पहुँच गए जहाँ वह हल जोतते हुए "घमोचन-घमोचन" का जप कर रहा था।

पास में एक गड्ढा था भगवान स्वयं तो वहाँ छिप गये और लक्ष्मीजी भक्त के पास जाकर पूछने लगीं- ‘‘अरे, तू यह क्या घमोचन-घमोचन बोले जा रहा है.?’’उन्होंने एक बार, दो बार, तीन बार पूछा परंतु उसने कुछ उत्तर ही नही दिया।

उसने सोचा कि इसको बताने में हमारा नाम-जप छूट जायेगा। अतः वह "घमोचन-घमोचन" करते रहा, बोला ही नहीं। जब बार-बार लक्ष्मी जी पूछती रहीं तो अंत में उसको आया गुस्सा, गाँव का आदमी तो था ही, बोला : ‘‘जा ! तेरे पति का नाम ले रहा हूँ क्या करेगी ।’’

अब तो लक्ष्मी जी डर गयी ,कि यह तो हमको पहचान गया। फिर बोलीं- ‘‘अरे, तू मेरे पति को जानता है क्या? कहाँ है मेरा पति?’’

एक बार, दो बार, तीन बार पूछने पर वह फिर झुँझलाकर बोला ‘‘वहाँ गड्ढे में है, जाना है तुझे भी उस गड्ढे मे..???

लक्ष्मी जी समझ गयीं कि इसने हमको पक्का पहचान लिया बोली प्रभू! बाहर आ जाओ अब छिपने से कोई फायदा नही है और तब भगवान निकलकर वहाँ आ गये और बोले ‘‘लक्ष्मी ! देख लिया, 'मेरे नाम की महिमा' !

यह अघमोचन और घमोचन का भेद भले ही न समझता हो लेकिन यह जप तो हमारा ही कर रहा था। हम तो समझते हैं...

यह घमोचन नाम से हमको ही पुकार रहा था

जिसके कारण मुझे इसको दर्शन देना पडा

भगवान ने भक्त को दर्शन देकर क्रुतार्थ

किया कोई भी भक्त शुद्ध अशुद्ध तुटे फुटे शब्दोसे अथवा

गुस्से मे भी कैसे भी भगवान का नाम लेता है

तब भी भगवान

का ह्रदय उससे मिलने को लालायित हो उठता है

🌹🌹🌹जय श्री राधे 🌹🌹🌹ना मांगू बैकुंठ लाड़ली और "ना" मैं मांगू मुक्ति"

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बस चरणों में तेरे "प्रीती" हो जाए" ऐसी दे दो भक्ति"

।। राधे राधे ।। श्री राधे।।।।।

 

कैसे हुई गुरु की उत्पत्ति
कैसे हुई गुरु की उत्पत्ति

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एक बार देवर्षि नारद बैकुंठ में पहुंचे तो उन्होंने वहां भगवान को उदास पाया। महर्षि नारद ने भगवान से इसका कारण पूछा तो भगवान ने कहा कि मैंने ये सृष्टि बनाई।

पशु-पक्षी, कीड़े-मकौड़े, जानवर, पेड़-पौधे आदि सभी कुछ बनाए। लेकिन जब से मैंने मनुष्य को बनाया है तब से ही मैं परेशान हो गया हूं।

बाकी जीव जंतु कभी कोई मांग नहीं करते लेकिन मनुष्य है कि इसकी मांगें पूरी ही नहीं होती।

रोजाना मेरे द्वार पर आ जाता है और नई-नई चीजों की मांग करता है। इसलिए मैं परेशान हूं।

तब नारद जी ने सुझाव दिया कि भगवान एक उपाय हो सकता है।

आपको मनुष्य हमेशा बाहर की चीजों में ढूंढने की कोशिश करता है, आप मनुष्य के अंदर ही छिपकर बैठ जाएं। मनुष्य कभी अपने अंदर झांकने का प्रयास नहीं करेगा और इसलिए आपको ढूंढ भी नहीं पाएगा।

भगवान ने कहा सुझाव तो ठीक है, लेकिन इसमें एक समस्या है। मनुष्य अगर मुझे ढूंढ ही नहीं पाएगा तो वह हमेशा आनंद से वंचित हो जाएगा।

मनुष्य मुझे प्यारा है। मैं नहीं चाहता कि ये दुखी रहे।

इस पर महर्षि नारद ने सुझाव दिया कि भगवन फिर तो आप स्वयं सतगुरु बनकर मनुष्य की परेशानियों का समाधान कर सकते हैं।

भगवान ये सुझाव सुनकर अति प्रसन्न हुए। इस तरह मनुष्य की परेशानियों को दूर करने के लिए भगवान ने गुरु की उत्पत्ति का मार्ग निकाला। राधे राधे

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मानसिक पूजन
*मानसिक पूजन*

वह मंदिर की पूजा में बहुत शानदार सेवा पेश करना चाहता था, लेकिन उसके पास धन नहीं था ! एक दिन की बात है वह एक भागवत पाठ में बैठा हुआ था और उसने सुना कि नारायण मन के भीतर भी पूजे जा सकते हैं ! उसने इस अवसर का लाभ उठाया क्योंकि वह एक लंबे समय से सोच रहा था कि कैसे बहुत शान से नारायण की पूजा करूं, लेकिन उसके धन पैसे नहीं था

 

जब वह यह समझ गया, कि मन के भीतर नारायण की पूजा कर सकते हैं, तो गोदावरी नदी में स्नान करने के बाद, वह एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ था ! अपने मन के भीतर वह बहुत खूबसूरत सिंहासन का निर्माण कर रहा था, गहनों के साथ लदी और सिंहासन पर भगवान के अर्च विग्रह को रखते हुए, वह अर्च विग्रह का अभिषेक कर रहा था गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी के जल के साथ

 

फिर बहुत अच्छी तरह से अर्च विग्रह का श्रृंगार कर रहा था, और फूल, माला के साथ पूजा कर रहा था ! वह बहुत अच्छी तरह से भोजन पका रहा था, और वह परमान्ना, मीठे चावल पका रहा था । तो वह परखना चाहता था, क्या वह बहुत गर्म था ! क्योंकि परमान्ना ठंडा लिया जाता है । परमान्ना बहुत गर्म नहीं लिया जाता है । तो उसने परमान्ना में अपनी उंगली डाली और उसकी उंगली जल गई

 

तब उसका ध्यान टूटा क्योंकि वहाँ कुछ भी नहीं था । केवल अपने मन के भीतर वह सब कुछ कर रहा था ! लेकिन उसने अपनी उंगली जली हुइ देखी । तो वह चकित रह गया !

इस तरह, वैकुन्ठ से नारायण, मुस्कुरा रहे थे

 

देवी लक्ष्मीजी ने पूछा - आप क्यों मुस्कुरा रहे हैं

 

मेरा एक भक्त अतिप्रभावी मानस पूजन कर रहा है । मेरे अन्य धनिक भक्त सब उच्च साधनो से सामग्रियों से मेरी अर्चना करते है । लेकिन मन भटकता रहता है । इस समर्पित भक्त का वास वैकुन्ठ मे होना चाहिए अतः मेरे दूतों को तुरंत भेजो उसे वैकुन्ठ लाने के लिए

 

भक्ति-योग इतना अच्छा है कि भले ही आपके पास भगवान की भव्य पूजा के लिए साधन न हो, आप मन के भीतर यह कर सकते हो । यह भी संभव है !! क्या फर्क पड़ता है कि किसका नम्बर कब आना है..जाना सबने ही है..हमको अहसास ही नहीं रहता कि हम सफर में ही नहीं..बल्कि एक लाइन में भी हैं

 

नित्य अच्छें कार्य करें कौन सा दिन आखिरी हैं कोई नही जानता

 

स्वर्ग ले जायेगें या नरक
*स्वर्ग ले जायेगें या नरक*

एक बुजुर्ग औरत मर गई, यमराज लेने आये।

 

औरत ने यमराज से पूछा, आप मुझे स्वर्ग ले जायेगें या नरक।

 

यमराज बोले दोनों में से कहीं नहीं।

 

तुमनें इस जन्म में बहुत ही अच्छे कर्म किये हैं, इसलिये मैं तुम्हें सिधे प्रभु के धाम ले जा रहा हूं।

 

बुजुर्ग औरत खुश हो गई, बोली धन्यवाद, पर मेरी आपसे एक विनती है।

 

मैनें यहां धरती पर सबसे बहुत स्वर्ग - नरक के बारे में सुना है मैं एक बार इन दोनों जगाहो को देखना चाहती हूं।

 

यमराज बोले तुम्हारे कर्म अच्छे हैं, इसलिये मैं तुम्हारी ये इच्छा पूरी करता हूं।

 

चलो हम स्वर्ग और नरक के रसते से होते हुए प्रभु के धाम चलेगें।

 

दोनों चल पडें, सबसे पहले नरक आया।

 

नरक में बुजुर्ग औरत ने जो़र जो़र से लोगो के रोने कि आवाज़ सुनी।

 

वहां नरक में सभी लोग दुबले पतले और बीमार दिखाई दे रहे थे।

 

औरत ने एक आदमी से पूछा यहां आप सब लोगों कि ऐसी हालत क्यों है।

 

आदमी बोला तो और कैसी हालत होगी, मरने के बाद जबसे यहां आये हैं, हमने एक दिन भी खाना नहीं खाया।

 

भूख से हमारी आतमायें तड़प रही हैं

 

बुजुर्ग औरत कि नज़र एक वीशाल पतिले पर पडी़, जो कि लोगों के कद से करीब 300 फूट ऊंचा होगा, उस पतिले के ऊपर एक वीशाल चम्मच लटका हुआ था।

 

उस पतिले में से बहुत ही शानदार खुशबु आ रही थी।

 

बुजुर्ग औरत ने उस आदमी से पूछा इस पतिले में कया है।

 

आदमी मायूस होकर बोला ये पतिला बहुत ही स्वादीशट खीर से हर समय भरा रहता है।

 

बुजुर्ग औरत ने हैरानी से पूछा, इसमें खीर है

 

तो आप लोग पेट भरके ये खीर खाते क्यों नहीं, भूख से क्यों तड़प रहें हैं।

 

आदमी रो रो कर बोलने लगा, कैसे खायें

 

ये पतिला 300 फीट ऊंचा है हममें से कोई भी उस पतिले तक नहीं पहुँच पाता।

 

बुजुर्ग औरत को उन पर तरस आ गया

सोचने लगी बेचारे, खीर का पतिला होते हुए भी भूख से बेहाल हैं।

 

शायद ईश्वर नें इन्हें ये ही दंड दिया होगा

 

यमराज बुजुर्ग औरत से बोले चलो हमें देर हो रही है।

 

दोनों चल पडे़, कुछ दूर चलने पर स्वरग आया।

 

वहां पर बुजुर्ग औरत को सबकी हंसने,खिलखिलाने कि आवाज़ सुनाई दी।

 

सब लोग बहुत खुश दिखाई दे रहे थे।

उनको खुश देखकर बुजुर्ग औरत भी बहुत खुश हो गई।

 

पर वहां स्वरग में भी बुजुर्ग औरत कि नज़र वैसे ही 300 फूट उचें पतिले पर पडी़ जैसा नरक में था, उसके ऊपर भी वैसा ही चम्मच लटका हुआ था।

 

बुजुर्ग औरत ने वहां लोगो से पूछा इस पतिले में क्या है।

 

स्वर्ग के लोग बोले के इसमें बहुत टेस्टी खीर है।

 

बुजुर्ग औरत हैरान हो गई

 

उनसे बोली पर ये पतिला तो 300 फीट ऊंचा है

 

आप लोग तो इस तक पहुँच ही नहीं पाते होगें

 

उस हिसाब से तो आप लोगों को खाना मिलता ही नहीं होगा, आप लोग भूख से बेहाल होगें

 

पर मुझे तो आप सभी इतने खुश लग रहे हो, ऐसे कैसे

 

लोग बोले हम तो सभी लोग इस पतिले में से पेट भर के खीर खाते हैं

 

औरत बोली पर कैसे,पतिला तो बहुत ऊंचा है।

 

लोग बोले तो क्या हो गया पतिला ऊंचा है तो

 

यहां पर कितने सारे पेड़ हैं, ईश्वर ने ये पेड़ पौधे, नदी, झरने हम मनुष्यों के उपयोग के लिये तो बनाईं हैं

 

हमनें इन पेडो़ कि लकडी़ ली, उसको काटा, फिर लकड़ीयों के तुकडो़ को जोड़ के वीशाल सिढी़ का निर्माण किया

 

उस लकडी़ की सिढी़ के सहारे हम पतिले तक पहुंचते हैं

 

और सब मिलकर खीर का आंनद लेते हैं

 

बुजुर्ग औरत यमराज कि तरफ देखने लगी

 

यमराज मुसकाये बोले

 

*ईशवर ने स्वर्ग और नरक मनुष्यों के हाथों में ही सौंप रखा है,चाहें तो अपने लिये नरक बना लें, चाहे तो अपने लिये स्वरग, ईशवर ने सबको एक समान हालातो में डाला हैं*

 

*उसके लिए उसके सभी बच्चें एक समान हैं, वो किसी से भेदभाव नहीं करता*

 

*वहां नरक में भी पेेड़ पौधे सब थे, पर वो लोग खुद ही आलसी हैं, उन्हें खीर हाथ में चाहीये,वो कोई कर्म नहीं करना चाहते, कोई मेहनत नहीं करना चाहते, इसलिये भूख से बेहाल हैं*

 

*कयोकिं ये ही तो ईश्वर कि बनाई इस दुनिया का नियम है,जो कर्म करेगा, मेहनत करेगा, उसी को मीठा फल खाने को मिलेगा*

 

दोस्तों ये ही आज का सुविचार है, स्वरग और नरक आपके हाथ में है

मेहनत करें, अच्छे कर्म करें और अपने जीवन को स्वरग बनाएं।

 

प्रकृति का नियम
*🍎 प्रकृति का नियम 🍎*

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जो इच्छा कर ही मन माही,

प्रभू कृपा कछु दुर्लभ नाहीं।

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एक बार नारद जी ने भगवान् से प्रश्न किया कि प्रभु आपके भक्त गरीब क्यों होते हैं ?

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तो भगवान् बोले: नारद जी ! मेरी कृपा को समझना बड़ा कठिन है।

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इतना कहकर भगवान् नारद के साथ साधु भेष में पृथ्वी पर पधारे और एक सेठ जी के घर भिक्षा मांगने के लिए दरवाजा खटखटाने लगे।

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सेठ जी बिगड़ते हुए दरवाजे की तरफ आए और देखा तो दो साधु खड़े हैं।

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भगवान् बोले: भैया ! बड़े जोरों की भूख लगी है। थोड़ा सा खाना मिल जाएगा।

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सेठ जी बिगड़कर बोले: तुम दोनों को शर्म नहीं आती। तुम्हारे बाप का माल है ?

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कर्म करके खाने में शर्म आती है, जाओ-जाओ किसी होटल में खाना मांगना।

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नारद जी बोले: देखा प्रभु ! यह आपके भक्तों और आपका निरादर करने वाला सुखी प्राणी है।

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इसको अभी शाप दीजिये। नारद जी की बात सुनते ही भगवान् ने उस सेठ को अधिक धन सम्पत्ति बढ़ाने वाला वरदान दे दिया।

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इसके बाद भगवान् नारद जी को लेकर एक बुढ़िया मैया के घर में गए। जिसकी एक छोटी सी झोपड़ी थी, जिसमें एक गाय के अलावा और कुछ भी नहीं था।

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जैसे ही भगवान् ने भिक्षा के लिए आवाज लगायी, बुढ़िया मैया बड़ी खुशी के साथ बाहर आयी।

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दोनों सन्तों को आसन देकर बिठाया और उनके पीने के लिए दुध लेकर आयीं और बोली: प्रभु ! मेरे पास और कुछ नहीं है, इसे ही स्वीकार कीजिये।

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भगवान् ने बड़े प्रेम से स्वीकार किया।

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तब नारद जी ने भगवान् से कहा: प्रभु ! आपके भक्तों की इस संसार में देखो कैसी दुर्दशा है, मेरे पास तो देखी नहीं जाती।

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यह बेचारी बुढ़िया मैया आपका भजन करती है और अतिथि सत्कार भी करती है। आप इसको कोई अच्छा सा आशीर्वाद दीजिए।

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भगवान् ने थोड़ा सोचकर उसकी गाय को मरने का अभिशाप दे डाला।

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यह सुनकर नारद जी बिगड़ गए और कहा: प्रभु जी ! यह आपने क्या किया ?

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भगवान् बोले: यह बुढ़िया मैया मेरा बहुत भजन करती है।

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कुछ दिनों में इसकी मृत्यु हो जाएगी और मरते समय इसको गाय की चिन्ता सताएगी कि मेरे मरने के बाद मेरी गाय को कोई कसाई न ले जाकर काट दे,

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मेरे मरने के बाद इसको कौन देखेगा ? तब इस मैया को मरते समय मेरा स्मरण न होकर बस गाय की चिन्ता रहेगी

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और वह मेरे धाम को न जाकर गाय की योनि में चली जाएगी।

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उधर सेठ को धन बढ़ाने वाला वरदान दिया कि मरने वक़्त धन तथा तिजोरी का ध्यान करेगा और वह तिजोरी के नीचे साँप बनेगा।

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प्रकृति का नियम है जिस चीज मे अति लगाव रहेगा यह जीव मरने के बाद वही जन्म लेता है ओर बहुत दुख भोगता है,*"दौलत" से सिर्फ "सुविधायें" मिलती हैं*

*"सुख" नहीं*!!

*"सुख" मिलता है "आपस" के प्यार से व अपनों के "साथ" से*

*अगर सिर्फ "सुविधाओं" से सुःख मिलता तो "धनवान" लोगों को कभी "दुःख" न होता*

༺꧁ #Զเधॆ_Զเधॆ꧂༻.

 

प्रतीक्षा करने का फल 
*प्रतीक्षा करने का फल* 

एक बार स्वर्ग से घोषणा हुई कि भगवान सेब बॉटने आ रहे है सभी लोग भगवान के प्रसाद के लिए तैयार हो कर लाइन लगा कर खड़े हो गए।

एक छोटी बच्ची बहुत उत्सुक थी क्योंकि वह पहली बार भगवान को देखने जा रही थी।

एक बड़े और सुंदर सेब के साथ साथ भगवान के दर्शन की कल्पना से ही खुश थी।

अंत में प्रतीक्षा समाप्त हुई। बहुत लंबी कतार में जब उसका नम्बर आया तो भगवान ने उसे एक बड़ा और लाल सेब दिया । लेकिन जैसे ही उसने सेब पकड़ कर लाइन से बाहर निकली उसका सेब हाथ से छूट कर कीचड़ में गिर गया। बच्ची उदास हो गई।

अब उसे दुबारा से लाइन में लगना पड़ेगा। दूसरी लाइन पहली से भी लंबी थी। लेकिन कोई और रास्ता नहीं था। सब लोग ईमानदारी से अपनी बारी बारी से सेब लेकर जा रहे थे।

अन्ततः वह बच्ची फिर से लाइन में लगी और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगी। आधी क़तार को सेब मिलने के बाद सेब ख़त्म होने लगे। अब तो बच्ची बहुत उदास हो गई।

उसने सोचा कि उसकी बारी आने तक तो सब सेब खत्म हो जाएंगे। लेकिन वह ये नहीं जानती थी कि भगवान के भंडार कभी ख़ाली नही होते।

जब तक उसकी बारी आई तो और भी नए सेब आ गए । भगवान तो अन्तर्यामी होते हैं। बच्ची के मन की बात जान गए।उन्होंने इस बार बच्ची को सेब देकर कहा कि पिछली बार वाला सेब एक तरफ से सड़ चुका था।

तुम्हारे लिए सही नहीं था इसलिए मैने ही उसे तुम्हारे हाथों गिरवा दिया था। दूसरी तरफ लंबी कतार में तुम्हें इसलिए लगाया क्योंकि नए सेब अभी पेडों पर थे। उनके आने में समय बाकी था। इसलिए तुम्हें अधिक प्रतीक्षा करनी पड़ी।

ये सेब अधिक लाल, सुंदर और तुम्हारे लिए उपयुक्त है। भगवान की बात सुनकर बच्ची संतुष्ट हो कर गई ।

इसी प्रकार यदि आपके किसी काम में विलंब हो रहा है तो उसे भगवान की इच्छा मान कर स्वीकार करें। जिस प्रकार हम अपने बच्चों को उत्तम से उत्तम देने का प्रयास करते हैं।उसी प्रकार भगवान भी अपने बच्चों को वही देंगे जो उनके लिए उत्तम होगा। ईमानदारी से अपनी बारी की प्रतीक्षा करे।और उस परम पिता की कृपा के लिए हर पल हर क्षण उसका गुणगान करें।

 

 

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