पुरानी यादों के स्टेटस, Old Memories Status
पुरानी यादों पर स्टेटस
Bachpan Quotes in Hindi
बचपन की यादें स्टेटस इन हिंदी
कुछ पुरानी यादें
Old Memories Status
पुरानी यादें ताजा हो गई
*हम शायद विशेष लोग हैं*
===========
क्योंकि हम वो आखरी पीढ़ी हैं जिन्होंने –
कई कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है,
प्लेट में चाय पी है।
हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने –
बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली डंडा, छुपा छिपी, खो खो, कबड्डी कंचे.. जैसे खेल खेले ।
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हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने –
कम (या बल्ब की पीली) रोशनी में होम वर्क किया है और नावेल पढ़े हैं –
हम वही पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात खतों में आदान प्रदान किये हैं ।
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हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने –
कूलर, एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुज़ारा है –
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हम अक्सर अपने छोटे बालों में सरसों का ज्यादा तेल लगा कर स्कूल और शादियों में जाया करते थे-
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हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी, किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये-
हम वो आखरी लोग हैं –
जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है।
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हम वो आखरी लोग हैं जो-
मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देखकर नुक्कड़ से भाग कर घर आ जाया करते थे !
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हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने –
अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर खड़िया का पेस्ट लगाकर चमकाये हैं !
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हम वो आखरी लोग हैं जिन्होंने –
गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव बनाई है। जिन्होंने गुड़ की चाय पी है । काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर ही इस्तेमाल किया है।
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हम निश्चित ही वो आखिर लोग हैं जिन्होंने चांदनी रातों में रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और बिनाका जैसे प्रोग्राम सुने हैं।
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कभी वो भी ज़माने थे :
हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे-
उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे-
एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था-
सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे-
वो सब दौर बीत गया, चादरें अब नहीं बिछा करतीं, डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं –
वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग लगातार कम होते गए, होते जा रहे हैं –
उस दौर के लोग ज्यादा पढ़े लिखे कम ही होते थे,
उन लोगों के घर भले ही पक्के और ऊंचे नहीं होते थे, मगर क़द में वो आज के इंसानों से कहीं ज्यादा बड़े हुआ करते थे-
अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता और अकेलेपन, व निराशा, में खोते जा रहे हैं !🤔
हम ही वो खुशनसीब लोग हैं जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है❗
आजकल के बच्चे क्या समझेंगे?
आजकल के बच्चे
क्या समझेंगे
😂
😂
😂
😂
😂
😂
😂
😂
हमने किन मुश्किल
परिस्थितियों में
पढ़ाई की है,
कभी कभी तो
मास्टर जी हमें
मूड फ्रेश करने के
लिये ही कूट दिया
करते थे
😂
😂
😂
😂
😂
😂
मन की बात…
आज कल के बच्चे
रिफ्रेश होने के
लिए जहाँ वाटर पार्क,
गेम सेंटर जाने की
जिद करते हैं …
वहीं हम ऐसे बच्चे थे
जो मम्मी-पापा के
एक झापङ से ही
फ्रेश हो जाते थे.!
😂
😂
😂
😂
😂
😂
😂
😂
वो भी क्या दिन
थे….????
जब बच्चपन में कोई
रिश्तेदार जाते समय 10 ₹
दे जाता था..
और माँ 8₹ टीडीएस
काटकर 2₹ थमा देती
थी….!!!
😁
😁
😁
😁
😁
😁
😁
😁
घर का T.V बिगड़ जाए
तो माता-पिता कहते हैं..
बच्चों ने बिगाड़ा है;
और अगर बच्चे बिगड़
जाएं तो
कहते है..
T.V. ने बिगाड़ा है !!!
😛😛
😛😛
😛😛
😛😛
आज कल के माँ बाप
सुबह स्कूल बस में बच्चे
को बिठा के ऐसे बाय बाय
करते हैं जैसे पढ़ने नहीं
विदेश यात्रा भेज रहें हो….
और
एक हम थे जो रोज़ लात
खा के स्कूल जाते थे…
😤😤
😤😤
😤😤
😤😤
4-4साल के बच्चे गाते
फिर रहे हैं
“छोटी ड्रेस में बॉम्ब लगदी
मैनु”
साला जब हम चार साल
के थे तो 1 ही वर्ड याद
था..
वही गाते फिरते थे…
“शक्ति शक्ति शक्तिमान-
शक्तिमान”
😇😇😇😇😇😇😇😇
भला हो हनी सिंह और
जॉन सीना का..
जिसने आज के बच्चो को
फैशन के नाम पे बाल
बारीक़ छोटे रखना सीखा
दिया..
हमारी तो सबसे ज्यादा
कुटाई ही बालो को लेके
हुई थी।।
हम दिलजले के अजय
देवगन बनके घूमते थे,
और जिस दिन पापा के
हाथ लग जाते उस दिन
नाईं की दुकान से
क्रन्तिविर के नाना पाटेकर
बनाके ही घर लाते थे।।।
.😀😀😀
Love you school friends,
याद करो और सबको याद दिलावो
😂🤣😂🤣😂🤣😂🤣
बॉलीवुड के गाने, जिन्हें गाने पर आपको जेल हो सकती है!
*बॉलीवुड के गाने, जिन्हें गाने पर आपको जेल हो सकती है!*
गाने अच्छे या बुरे होते हैं. सुरे या बेसुरे होते हैं. मगर कभी सुना है कि गाने कानूनी या गैर कानूनी हों? आज सुन लो. देख भी लो:
🍀🍀तेरे घर के सामनेइक घर बनाऊंगा
इन्होंने प्रॉपर्टी खरीद रखी हो तो बात अलग है. मगर प्रॉपर्टी अगर ली नहीं है तो IPC की धारा 247 के तहत सजा होगी. मने बिना अपने नाम जमीन सैंक्शन हुए उसपर कंस्ट्रक्शन करना. 50 हजार का फाइन लगेगा और बिल्डिंग गिरा अलग दी जाएगी. ऐसे में हीरो के लिए गर्लफ्रेंड से ब्रेक अप कर किसी और को ढूंढने की सलाह रहेगी.हालांकि अगर गीत गाने वाले मजदूर या राजमिस्त्री है भी वो सजा से बच सकता है.
🍀🍀🍀सात समुंदर पार मैं तेरे पीछे पीछे आ गई
जिस अर्जेंट तरीके से यहां जाने की बात की गई है, लगता नहीं है कि हिरोइन की कोई भी प्लानिंग थी. कह रही हैं कि न रास्ता मालूम न तेरा नाम पता मालूम. ऐसे में उसके पास वीजा अप्लाई करने का टाइम तो कतई नहीं होगा. वीजा के बिना 7 समंदर पार जाने पर आपको धरा जा सकता है. वो भी यहां की नहीं, वहां की पुलिस से. गैरकानूनी तरीके से देश में घुसने का केस अलग चलेगा.
🍀🍀🍀🍀तेरा पीछा न मैं छोडूंगा सोनियेभेज दे चाहे जेल में प्यार के इस खेल में
IPC की धारा 354D के मुताबिक़ किसी लड़की का पीछा करना, जबरन उससे कॉन्टैक्ट करने की कोशिश करना, मिलने की कोशिश करना, पीछा करना, या इंटरनेट पर उसपर नजर रखना स्टॉकिंग कहलाता है. जिसका अपराधी साबित होने पर बंदे को भारी फाइन देने के साथ तीन साल तक की सजा हो सकती है.हीरो भी गजब का बेशर्म है. उसे पता है कि लड़की ने केस कर दिया तो सजा होगी. मगर नाचने में कोई कसर नहीं छूट रही.
1990 का दूरदर्शन और हम
*1990 का दूरदर्शन और हम*
1.सन्डे को सुबह-2 नहा-धो कर
टीवी के सामने बैठ जाना
2.”रंगोली”में शुरू में पुराने फिर
नए गानों का इंतज़ार करना
3.”जंगल-बुक”देखने के लिए जिन
दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका
घर पर आना
4.”चंद्रकांता”की कास्टिंग से ले कर
अंत तक देखना
5.हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना
चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते
तक सोचना
6.शनिवार और रविवार की शाम को
फिल्मों का इंतजार करना
7.किसी नेता के मरने पर कोई सीरियल
ना आए तो उस नेता को और गालियाँ
देना
8.सचिन के आउट होते ही टीवी बंद
कर के खुद बैट-बॉल ले कर खेलने
निकल जाना
9.”मूक-बधिर”समाचार में टीवी एंकर
के इशारों की नक़ल करना
10.कभी हवा से ऐन्टेना घूम जाये तो
छत पर जा कर ठीक करना
बचपन वाला वो ‘रविवार’ अब नहीं
आता, दोस्त पर अब वो प्यार नहीं
आता।
जब वो कहता था तो निकल पड़ते
थे बिना घडी देखे,
अब घडी में वो समय वो वार नहीं
आता।
बचपन वाला वो ‘रविवार’ अब नहीं
आता…।।।
वो साईकिल अब भी मुझे बहुत याद
आती है, जिसपे मैं उसके पीछे बैठ
कर खुश हो जाया करता था। अब
कार में भी वो आराम नहीं आता…।।।
जीवन की राहों में कुछ ऐसी उलझी
है गुथियाँ, उसके घर के सामने से
गुजर कर भी मिलना नहीं हो पाता…।।।
वो ‘मोगली’ वो ‘अंकल Scrooz’,
‘ये जो है जिंदगी’ ‘सुरभि’ ‘रंगोली’
और ‘चित्रहार’ अब नहीं आता…।।।
रामायण, महाभारत, चाणक्य का वो
चाव अब नहीं आता, बचपन वाला वो
‘रविवार’ अब नहीं आता…।।।
वो एक रुपये किराए की साईकिल
लेके, दोस्तों के साथ गलियों में रेस
लगाना!
अब हर वार ‘सोमवार’ है
काम, ऑफिस, बॉस, बीवी, बच्चे;
बस ये जिंदगी है। दोस्त से दिल की
बात का इज़हार नहीं हो पाता।
बचपन वाला वो ‘रविवार’ अब नहीं
आता…।।।
बचपन वाला वो ‘रविवार’ अब नही
आता…।।।
शादी में (buffer) खाने में वो आनंद कहां
*शादी में (buffer) खाने में वो आनंद कहां…..?*
जो पंगत में आता था जैसे….
पहले जगह रोकना !
बिना फटे पत्तल दोनों का छांटना…..!
उतारे हुए चप्पल जूतों पर आधा ध्यान रखना…!
फिर पत्तल पे ग्लास रखकर उड़ने से रोकना!
नमक रखने वाले को जगह बताना….
यहां रख नमक
सब्जी देने वाले को कहना….
हिला के दे..!
या तरी तरी देना!
उंगलियों के इशारे से 2 लड्डू और गुलाब जामुन,काजू कतली लेना……
पूड़ी छांट छांट के और
गरम गरम लेना…..!.
पीछे वाली पंगत में झांक के देखना……क्या क्या आ
गया……?
अपने इधर और क्या बाकी है…..?
जो बाकी है उसके लिए आवाज लगाना…..!
पास वाले रिश्तेदार के पत्तल में जबरदस्ती पूड़ी
रखवाना……!
रायते वाले को दूर से आता देखकर फटाफट रायते
का दोना पीना…..।
पहले वाली पंगत कितनी देर में उठेगी…….?
उसके हिसाब से बैठने की पोजीसन बनाना।
और आखिर में पानी वाले को खोजना
अपनी संस्कृति, अपनी विरासत
🙏
हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी
*हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी*
पहला चरण – कैंची
दूसरा चरण – डंडा
तीसरा चरण – गद्दी …
तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस पापा या चाचा चलाया करते थे.
*तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।*
*”कैंची” वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे*।
और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और *”क्लींङ क्लींङ” करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है* ।
*आज की पीढ़ी इस “एडवेंचर” से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना “जहाज” उड़ाने जैसा होता था*।
हमने ना जाने कितने दफे अपने *घुटने और मुंह तोड़वाए है* और गज़ब की बात ये है कि *तब दर्द भी नही होता था,* गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।
अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और *अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में*।
मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी! *”जिम्मेदारियों” की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं*।
वो ज़माना और था …
*वो ज़माना और था …*
कि जब पड़ोसियों के आधे बर्तन हमारे घर और हमारे बर्तन उनके घर मे होते थे !
वो ज़माना और था … ☺️
कि जब गेंहूँ साफ करना … किटी पार्टी सा हुआ करता था ✓
कि जब ब्याह में मेहमानों को ठहराने के लिए होटल नहीं लिए जाते थे, पड़ोसियों के घर उनके बिस्तर लगाए जाते थे !
वो ज़माना और था… 😌
कि जब छतों पर किसके पापड़ और आलू चिप्स सूख रहें है बताना मुश्किल था !
कि जब हर रोज़ दरवाजे पर लगा लेटर बॉक्स टटोला जाता था !
कि जब डाकिये का अपने घर की तरफ रुख मन मे उत्सुकता भर देता था !
वो ज़माना और था… 😌
कि जब रिश्तेदारों का आना,
घर को त्योहार सा कर जाता था !
कि जब आठ मकान आगे रहने वाली माताजी हर तीसरे दिन तोरई भेज देती थीं , और हमारा बचपन कहता था , कुछ अच्छा नहीं उगा सकती थीं ये ?
वो ज़माना और था… 😌
कि जब मौहल्ले के सारे बच्चे हर शाम हमारे घर ॐ जय जगदीश हरे गाते …….
और फिर हम उनके घर मंत्र गाते !
कि जब बच्चे के हर जन्मदिन पर महिलाएं बधाईयाँ गाती थीं …… और बच्चा गले मे फूलों की माला लटकाए अपने को शहंशाह समझता था !
कि जब भुआ और मामा जाते समय जबरन हमारे हाथों में पैसे पकड़ाते थे !
और बड़े आपस मे मना करने और देने की बहस में एक दूसरे को अपनी सौगन्ध दिया करते थे !
वो ज़माना और था … 😌
कि जब शादियों में स्कूल के लिए खरीदे काले नए चमचमाते जूते पहनना किसी शान से कम नहीं हुआ करता था !
कि जब छुट्टियों में हिल स्टेशन नहीं मामा के घर जाया करते थे …. और अगले साल तक के लिए यादों का पिटारा भर के लाते थे !
कि जब स्कूलों में शिक्षक हमारे गुण नहीं हमारी कमियां बताया करते थे !
वो ज़माना और था… 😌
कि जब शादी के निमंत्रण के साथ पीले चावल आया करते थे !
कि जब बिना हाथ धोये मटकी छूने की इज़ाज़त नहीं थी !
वो ज़माना और था….😌
कि जब गर्मियों की शामों को छतों पर छिड़काव करना जरूरी हुआ करता था !
कि जब सर्दियों की गुनगुनी धूप में स्वेटर बुने जाते थे और हर सलाई पर नया किस्सा सुनाया जाता था !
कि जब रात में नाख़ून काटना मना था ….. जब संध्या समय झाड़ू लगाना बुरा था !
वो ज़माना और था….. 😌
कि जब बच्चे की आँख में काजल और माथे पे नज़र का टीका जरूरी था !
कि जब रातों को दादी नानी की कहानी हुआ करती थी !
कि जब कजिन नहीं सभी भाई बहन हुआ करते थे !
वो ज़माना और था…. 😌
कि जब डीजे नहीं , ढोलक पर थाप लगा करती थी, कि जब गले सुरीले होना जरूरी नहीं था, दिल खोल कर बन्ने बन्नी गाये जाते थे !
कि जब शादी में एक दिन का महिला संगीत नहीं होता था आठ दस दिन तक गीत गाये जाते थे !
वो ज़माना और था… 😌
कि जब बिना AC रेल का लंबा सफर पूड़ी, आलू और अचार के साथ बेहद सुहाना लगता था !
वो ज़माना और था… 😌
कि जब चंद खट्टे बेरों के स्वाद के आगे कटीली झाड़ियों की चुभन भूल जाए करते थे !
वो ज़माना और था….😌
कि जब सबके घर अपने लगते थे …. बिना घंटी बजाए बेतकल्लुफी से किसी भी पड़ौसी के घर घुस जाया करते थे !
वो ज़माना और था… 😌
कि जब पेड़ों की शाखें हमारा बोझ उठाने को बैचेन हुआ करती थी !
कि जब एक लकड़ी से पहिये को लंबी दूरी तक संतुलित करना विजयी मुस्कान देता था !
कि जब गिल्ली डंडा, चंगा पो, सतोलिया और कंचे दोस्ती के पुल हुआ करते थे !
वो ज़माना और था… 😌
कि जब हम डॉक्टर को दिखाने कम जाते थे डॉक्टर हमारे घर आते थे ! डॉक्टर साहब का बैग उठाकर उन्हें छोड़ कर आना तहज़ीब हुआ करती थी !
कि जब इमली और कैरी खट्टी नहीं मीठी लगा करती थी !
वो ज़माना और था… 😌
कि जब बड़े भाई बहनों के छोटे हुए कपड़े ख़ज़ाने से लगते थे !
कि जब लू भरी दोपहरी में नंगे पाँव गालियां नापा करते थे !
कि जब कुल्फी वाले की घंटी पर मीलों की दौड़ मंज़ूर थी !
वो ज़माना और था 😌
कि जब मोबाइल नहीं धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता और कादम्बिनी के साथ दिन फिसलते जाते थे !
कि जब TV नहीं प्रेमचंद के उपन्यास हमें कहानियाँ सुनाते थे !
वो ज़माना और था … 😌
कि जब मुल्तानी मिट्टी से बालों को रेशमी बनाया जाता था !
कि जब दस पैसे की चूरन की गोलियां ज़िंदगी मे नया जायका घोला करती थी !
कि जब पीतल के बर्तनों में दाल उबाली जाती थी ! कि जब चटनी सिल पर पीसी जाती थी !
*वो ज़माना और था ✓✓✓*
*वो ज़माना वाकई कुछ और था !*
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सभी के लिए – जन्मदिन की बधाई सन्देश
विशेष के लिए – जन्मदिन की बधाई सन्देश
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सभी के लिए – विवाह वर्षगांठ की शुभकामनाये संदेश
विशेष के लिए – विवाह वर्षगांठ की शुभकामनाये संदेश
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